कपास फसल की बीमारियां एवं उनका नियंत्रण

कपास फसल कोरियाँ एवं उनका नियंत्रण अन्य फसलों की भाँति कपास की फसल में बहुत सी बिमारियों लगती है । जो अनुमानित 10-20 प्रतिशत फसल को हानि पहुंचाती है । इन बिमारियों के लक्षण व उपचार भी अलग – अलग होते हैं . इसलिए बीमारी की सही पहचान करना अति आवश्यक हो जाता है । प्रमुख बिमारियों के लक्षण एवम् उपचार निम्नलिखित हैं ।

कपास फसल की बीमारियां एवं उनका नियंत्रण
कपास फसल की बीमारियां एवं उनका नियंत्रण

पौधरोग

लक्षण: मिट्टी की सतह के पास तनों पर लाल – भूरे रंग के धब्बे बनते हैं । इससे 2-3 सप्ताह में ही छोटे पौधे मर जाते हैं ।

बीज उपचार: कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा . बीज के हिसाब से बीजोपचार करें ।

जीवाणु अंगमारी रोग

लक्षण पत्तियों पर कोणदार जलसिक्त ( पानीदार ) धब्बे बनते है जो बाद में लाल व जामुनी रंग के हो जाते हैं और आपस में मिल जाते हैं । पत्तियों की शिराऐ काली पड़ जाती हैं । लाल या जामुनी रंग के धब्बे टहनियों व टिण्डों पर भी नजर आते हैं ।

रोकथाम के उपाय: स्ट्रैप्टोसाइक्लिन ( 6-8 ग्राम ) व कोंपर आक्सीक्लोराईड ( 600-800 ग्राम ) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड 15-20 दिन के अन्तर पर 4 छिड़काव करें ।

पत्ता धब्बा रोग

लक्षण: गोल व अण्डाकार लाल बैंगनी व हल्के भूरे रंग के धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं और कभी – कभी पत्तियों पर धब्बों के स्थान पर छेद भी बन जाते हैं । इस प्रकार के धब्बे टिण्डों पर भी पाये जाते हैं और डोडियो पर गुलाबी पिण्ड दिखाई देते हैं । टिण्डों पर धब्बे होने के कारण अन्दर का रेशा और बीज खराब हो जाता है । ये रोग माइरोचिसियम और एन्थ्रैक्नोज नामक फफूंद से होता है ।

रोकथाम के उपाय: पत्ता धब्बा रोग पर नियंत्रण के लिए कॉपर आक्सीक्लोराईड ( 600-800 ग्राम ) को 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड 15-20 दिन के अन्तर पर 4 छिड़काव करें । इन फंफूदनाशक दवाइयों को पत्तों पर अच्छी तरह चिपके रहने के लिए दवा के 100 लीटर घोल में 10 ग्राम सैल्वेट या 50 मि.ली. ट्राइटोन एक्स मिला लें ।

जड़ गलन रोग

लक्षण: आरम्भ में पौधे की ऊपरी पत्तियां मुरझाने लगती हैं तथा 24 घण्टे के अन्दर – अन्दर पौधे पूर्ण रूप से मुरझा जाते व मर जाते हैं। रोगग्रस्त पौधे आसानी से उखाड़े जा सकते हैं और इनकी जड़े देखें तो कुछ गली हुई चिपचिपी सी लगती हैं तथा छाल भी उतरने लगती है ।

उखेड़ा (बिल्ट) रोश

लक्षण्य : आरम्भ में नीचे की पत्तियां किनारे से पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं और कुछ ही समय में पूरी की पूरी पत्ती पीली पड़ कर गिर जाती है । रोगग्रस्त पौधे आसानी से नहीं उखाड़े जा सकते हैं अगर उखाड़ कर उसकी जड़ों को लम्बाई की तरफ चीरकर देखा जाये तो भूरे रंग की धारी सी दिखाई देती है जो पौधों को खुराक नहीं जाने देती और पौधा सूख जाता है ।

रोकथाम के उपाय

  • जड़ गलन वाले खेतों में कपास की एक लाईन के बाद मोठ की एक लाईन बोयें।
  • काब्रेंन्दजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा . बीज की दर से बीजोपचार करें ।
  • एन रोगों से प्रभावित पौधों व उनके साथ लगे स्वस्थ पौधों में कार्बेन्डाजिम ( 2 ग्राम / लीटर पानी ) के हिसाब पील बनवाए और 200-300 मिली पोल की मात्रा से प्रति पौधे के हिसाब से जड़ों में डालें ।


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टिण्डा गलन रोग

लक्षण: टिण्डों पर जलसिक्त धब्बें बनते हैं जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं और टिण्डें गलने शुरू हो जाते हैं । प्रभावित टिण्डें पूरी तरह से नहीं खिल पाते हैं । रोगग्रस्त टिण्डों को विभिन्न फंफूदियाँ हानि पहुंचाती है जिससे रेशे पीले और काले पड़ जाते हैं ।

रोकथाम के उपाय : टिण्डा गलन रोग पर नियंत्रण के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड ( 2 ग्राम / लीटर पानी ) का छिड़काव करें । इन फंफूदनाशक दवाइयों को पत्तों पर अच्छी तरह चिपके रहने के लिए दवाई के 100 लीटर घोल में 10 ग्राम सैल्वेट या 50 मि.ली. ट्राइटोन एक्स मिला लें ।

पत्ता मरोड़ रोग

लक्षण : पत्तियों की छोटी वाली नसें मोटी हो जाती हैं , पत्ता ज्यादा हरा दिखाई पड़ता है , पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़कर कप जैसी आकृति की हो जाती है । ऐसे पौधे छोटे रह जाते हैं , इन पर फूल , कली व टिण्डे भी कम लगते हैं । यह एक विषाणु जनित रोग है जो सफेद मक्खी से फैलता है ।

रोकथाम के उपाय :

  • खरपतवारों का नियंत्रण करें
  • सफेद मक्खी का पूर्ण रूप से नियंत्रण रखें ।
  • पत्ता मरोड़ रोगरोधी किस्मों की बिजाई समय पर करें ।

नया सूखा रोग ( पैराविल्ट )

लक्षण : लम्बे समय सूखे की अवस्था के बाद अधिक बरसात होने या सिंचाई करने पर यह रोग खेत में कहीं – कहीं दिखाई देता है । पौधे की सभी पत्तियां अचानक नीचे की ओर झुक जाती है और स्वस्थ पौधे मुरझाये हुए लगते हैं । पत्तियां पीली पड़ जाती है और पूरा पौधा 2-4 दिनों में सूख जाता है ।

रोकथाम के उपाय

  • गहरी जुताई और गोबर की खाद का प्रयोग करें ।
  • खादों को सन्तुलित मात्रा में प्रयोग करें ।
  • अगस्त- अक्तूबर में 25 प्रतिशत यूरिया के घोल का दो बार छिड़काव करें ।
  • इस रोग के लक्षण प्रकट होते ही 24-48 घंटो के बीच 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराईड को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से इस रोग पर नियन्त्रण पाया जा सकता है परन्तु रोगी पौधें के सूख जाने पर दवा का असर नहीं होता है ।

बंदरपंजा की रोकथाम

बंदरपंजा / भिण्डी पत्ती ( मालफॉरमेशन ) से पत्ते व कोंपलें उंगलियों की तरह लम्बी हो जाती हैं तथा कलियां व टिण्डे गिर जाते हैं । इसका मुख्य कारण 2,4-0 से दूषित कीटनाशक दवाईयां या छिड़काव यन्त्र हैं । इस समस्या के समाधान के लिए कीटनाशक समय से पहले खरीदें तथा पूरे खेत में छिड़काव करने से 8-10 दिन पहले कुछ पौधों पर छिड़काव कर जांचें । छिड़काव यंत्र को प्रयोग से पहले तथा प्रयोग के बाद अच्छी तरह साफ करें । समस्या हो जाने पर प्रभावित कोपलों को 15 से.मी. काट दें तथा फसल में नत्रजन वाली खाद डालें एवं 2.5 प्रतिशत यूरिया तथा 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव करें । कोंपले काटने तथा यूरिया + जिंक सल्फेट के छिड़काव का काम एक सप्ताह बाद दोबारा करें ।

सूत्रकृमि रोग व रोकथाम

इस रोग से ग्रसित पौधे पीले पड़ जाते हैं व बौने रह जाते हैं । इन पौधों की जड़ों पर गाठें बन जाती है । ऐसे पौधों पर टिण्डों की संख्या व आकार में कमी आ जाती है । सूत्रकृमि प्रभावित क्षेत्रों में एक एकड़ के बीज का 50 मि.ली. बायोटिका ( जी . डी . 35-47 ) से बीज उपचार करें तथा छाया में सुखाकर बिजाई करें ।

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