कपास भारत में मुख्य धान्य फसलों में से एक है और इसे अधिकतर उत्तर भारत में उगाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण फसल है जो कि अन्य फसलों से अधिक धन उत्पादन करता है। इसलिए, इसकी खेती एक लाभदायक व्यवसाय हो सकती है। यहां कुछ जरूरी टिप्स हैं कि कैसे कपास की खेती करें:
- जमीन की तैयारी: कपास के लिए अच्छी तैयारी वाली जमीन उच्च नमी धारण करने वाली जमीन होती है। इसे गर्मियों में जलाईदी करके तैयार किया जाना चाहिए।
- बीज चुनें: अच्छी उन्नत गुणवत्ता वाले बीज चुनने की सलाह दी जाती है। बीजों की उचित धारणा के लिए, 40-45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर जमीन के लिए उपयुक्त होता है।
- बुआई का समय: जब जमीन उच्च नमी वाली होती है, तब बुआई के लिए समय सही होता है। गर्मियों में कपास बोई जाती है जबकि सर्दियों में नहीं।
- पानी उपलब्धता: इस फसल की सफलता के लिए पानी की उपलब्धता बहुत जरूरी होता है।
ज्यादा पैदावार देने वाली कपास की खेती के लिए निम्नलिखित टिप्स उपयोगी हो सकते हैं:
- अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें: अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का चयन करने से कपास की फसल की उत्पादकता बढ़ती है। विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश किए जाने वाले उन्नत बीजों का उपयोग करना चाहिए।
- उपयुक्त जमीन का चयन करें: कपास की उत्पादकता उन जमीनों पर अधिक होती है जो उच्च नमी धारण करते हैं। इसलिए, एक उच्च नमी धारण करने वाली जमीन का चयन करना चाहिए।
- समय पर बुआई करें: समय पर बुआई करने से कपास की उत्पादकता बढ़ती है। अधिकतर क्षेत्रों में जून-जुलाई महीनों में बोई जाती है।
- न्यूनतम फसल घास को काटें: फसल के साथ साथ उगने वाली घास को भी न्यूनतम रखें। यह फसल के विकास को अधिक बढ़ाता है।
- उचित खाद दें: कपास की फसल के लिए उचित मात्रा में खाद देना चाहिए। पोटेशियम और नाइट्रोजन युक्त खाद का उपयोग करे।
कपास की किस्म
कपास की कई जातियाँ होती हैं जो भिन्न-भिन्न उत्पादकता, रंग, आकार और विकास अवधि के साथ विशिष्ट विशेषताओं के साथ आती हैं। कुछ मुख्य कपास की जातियां निम्नलिखित हैं:
- अमेरिकन कपास (Gossypium hirsutum)
- ईजिप्शियन कपास (Gossypium barbadense)
- इंडियन कपास (Gossypium arboreum)
- अफ्रीकी कपास (Gossypium herbaceum)
- उपराष्ट्रीय कपास (Gossypium anomalum)
- दखिनी आमेरिकी कपास (Gossypium mustelinum)
- ब्राजीलियन कपास (Gossypium tomentosum)
भारत में कपास खेती के लिए ज्यादा बोय जाने वाली किस्म बन्नी बी टी की खेती की जाती है! कुछ भारतीय किस्मे जो भारत में खेती की जाती है, आप इसे टेबल में देख सकते है और अपने क्षेत्र के अनुसार इसकी खेती करे!
किस्म | उपयुक्त जिले | विशेष |
---|---|---|
डी.सी.एच. 32 | धार, झाबुआ, बड़वानी खरगौन | रेशेकी किस्म |
एच-8 | खण्डवा, खरगौन व अन्य क्षेत्र | जल्दी पकने वाली किस्म 130-135दिन 25-30क्विं/हेक्टर |
जी कॉट हाई 10 | खण्डवा, खरगौनव अन्यक्षेत्र | अधिकउत्पादन 30-35 क्विं/ हेक्टर |
बन्नी बी टी | खण्डवा खरगौन व अन्य क्षेत्र | महीन रेशा, अच्छी गुणवत्ता 30-35 क्विं/हेक्टर |
डब्लू एच एच 09बीटी | खण्डवा, खरगौनव अन्यक्षेत्र | महीन रेशा, अच्छी गुणवत्ता 30-35क्विं/हेक्टर |
आरसीएच 2बीटी | – | अधिक उत्पादन, सिंचिंत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त |
जे के एच-1 | – | अधिक उत्पादन, सिंचिंत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त |
जे के एच 3 | – | जल्दी पकने वाली किस्म 130-135 दिन |
भारत में कपास की खेती
हम भारत में कपास की खेती का अनुमान लगाये तो इसकी खेती लगभग 9 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि में खेती की जाती है! यदि हम एक हेक्टेयर की बात करे तो लगभग 2मिलियन टन का उत्पाद किया जाता है! भारत में सबसे ज्यादा कपास महाराष्ट्र खेती की जाती है! कपास की खेती को भारतीय किसान नगदी फसल मानी जाती है! सबसे ज्यादा आमदनी देने वाली कपास को माना जाता है!
कपास का उपयोग
कपास एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है जो भारत में बहुत व्यापक रूप से उपजाया जाता है। कपास के उत्पादों का उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है:
- वस्त्र उद्योग: कपास वस्त्र उद्योग के लिए सबसे अहम फसल है। इसके बीज से ताना बुना जाता है जिसे उत्तर भारत में रजाई या चादर के नाम से जाना जाता है।
- खाद्य उद्योग: कपास का तेल, दाल और अन्य खाद्य उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
- खनिज उद्योग: कपास के बीज से तेल निकाला जाता है जो नहार पेट्रोलियम जैसी उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
- कागज उद्योग: कपास के कागज उद्योग में भी उपयोग किया जाता है। कपास की फाइबर उत्पादों का उपयोग पेपर में, जूट में और अन्य उत्पादों में किया जाता है।
- कपड़े के साथ और नमूनों में उपयोग किया जाता है।
फसल के लिए सही मौसम
कपास फसल के लिए सही मौसम उष्णकटिबंधीय व उमसदी व उपजाऊ तथा अच्छी नमी वाला होना चाहिए। कपास फसल गर्म मौसम में अच्छी तरह से विकसित होती है। यह फसल तपेदिक क्षेत्रों में उगाई जाती है, जहां दिन का तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस होता है और रात का तापमान 10-20 डिग्री सेल्सियस होता है। अधिक वर्षा व जल भराव के क्षेत्रों में कपास फसल नहीं उगाई जाती है क्योंकि जल कपास फसल को नष्ट कर सकता है।
कपास की बुआई का समय शुरू मौसम के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए। ज्यादातर क्षेत्रों में अप्रैल के पहले हफ्ते से मध्य अगस्त तक कपास की बुआई की जाती है।
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कपास फसल को बारिश से बचाने के लिए वर्षा से पहले एक स्प्रे एक बार लगाना चाहिए जो फसल को पानी से नुकसान से बचाता है। कपास फसल नियमित रूप से नियंत्रित प्रकार से जलावृति और कीटनाशकों से बचाए जाना चाहिए।
कपास में निंड़ाई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
कपास में निंड़ाई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं।
- समय पर फसल काटें: कपास को समय पर काटने से उसमें कीटों एवं रोगों का प्रसार कम होता है तथा उसकी गुणवत्ता भी बढ़ जाती है।
- बीज उत्पादन से पहले कीट नियंत्रण: बीज उत्पादन के लिए चुने गए पौधों पर कीट नियंत्रण करना आवश्यक होता है।
- समय पर खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार के लिए पौधों पर नियमित रूप से खाद देना, पानी देना और नियमित रूप से खरपतवार नियंत्रण करना आवश्यक होता है।
- जैविक नियंत्रण: कपास की खेती में जैविक नियंत्रण करना एक अच्छा विकल्प होता है। इससे कीटों एवं रोगों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जाता है।
- जैव विषधारा का उपयोग: कपास की खेती में जैव विषधारा का उपयोग करके भी कीटों एवं रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- जल संचयन: कपास की खेती में जल उपयुक्त मात्र में देना चाहिए! ज्यादा जल देने से फसल ख़राब हो सकती है! इसलिए सिचाई के समय पानी की मात्र का द्यान रखना चाहिए!
कोनसे किट फसल को ज्यादा नुकसान पहुचाता है?
यदि हम किट की बात करे तो फसल के लिए सभी हानिकारक होते है, लेकिन कपास की फसल में ज्यादा किट जो सामान्य तोर पर पाए जाते है वो निम्न है:-
- हरा मच्छर
- सफेद मक्खी
- माहो
- तेला
- मिलीगब
ये सब किट फसल को ज्यादा नुकसान करते है तो समय-समय पर कपास की फसल की देखरेख करना आवश्यक है!
कीट की पहचान
कुछ किसान भाई जो कपास के खेती के दोरान किट की पहचान नही कर सकते है जिसकी वजह से उसे काफी नुकसान होता है! हम आपको पांच किट को पहचाने के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे:
हरा मच्छर:- पंचभुजाकार हरे पीले रंग के अगले जोड़ी पंखे पर एक काला धब्बा पाया जाता है!
सफेद मक्खी:- हल्के पीले रंग की जिसका शरीर सफेद मोमीय पाउडर से ढंका रहता है!
माहो:- अत्यंत छोटे मटमैलेहरे रंग का कोमलकिट है।
तेला:– अत्यंत छोटे काले रंग के कीट
मिलीगब:- मादा पंखी विहीन,शरीर सफेद पाउडर से ढंका। पर के शरीर पर काले रंग के पंख।
किट नियत्रण
- पूरे खेत में प्रति एकड़ 10 पीले प्रपंच लगाये।
- नीम तेल 5मिली.टिनोपाल/सेन्डोविट 1मिली.प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
- रासायनिक कीटनाशी थायोमिथाक्ज़्म 25डब्लुजी – 100ग्रामसक्रियतत्व/हेएसिटामेप्रिड 20एस.पी. – 20ग्रामसक्रियतत्व/हेक्टयर इमिडाक्लोप्रिड 17.8एस.एल – 200मिली सक्रियतत्व/हेक्टयर ट्रायजोफास 40ईसी 400मिली सक्रियतत्व/हेक्टयर एक बार उपयोग में लाई गई दवा का पुनः छिड़काव नहीं करें।
कपास के रोग
- धब्बा एवं जीवाणु झुलसा रोग
- मायरोथीसियम रोग
- अल्टरनेरिया रोग
- पौध अंगमारी रोग
लक्षण
धब्बा एवं जीवाणु:- रोग के लक्षण पौधे के वायुवीय भागों पर छोटे गोल जल शक्ति बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। रोग के लक्षण घेटों पर भी दिखाई देते हैं। घेटों एवं सहपत्रों पर भी भूरे काले चित्ते दिखाई देते हैं। ये घेटियाँ समय से पहले खुल जाती है रोग ग्रस्त घेटों का रेशा खराब हो जाता है इसका बीज भी सिकुड़ जाता है
मायरोथीसियम:-इस रोग में पत्तियों पर हल्के भूरे से गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। कुछ समय बाद ये धब्बे आपस में मिलकर अनियमित रूप से पत्तियों का अधिकांश भाग ढँक लेते हैं, धब्बों के बीच का भाग टूट कर नीचे गिर जाता है। इस रोग से फसल की उपज में लगभग 20-25% तक कमी आंकी गई है।
अल्टरनेरिया:- इस रोग में पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के संकेंद्रित धब्बे बनते हैं व अन्त में पत्तियाँ सूखकर झड़ने लगती है। वातावरण में नमी की अधिकता होने पर ही यह रोग दिखाई देता है और उग्ररूप से फैलता है।
पौध अंगमारी:- पौध अंगमारी रोग में बीजांकुरों के बीज पत्रों पर लाल भूरे रंग के सिकुड़े हुए धब्बे दिखाई देते हैं! स्तम्भ मूल संधि क्षेत्र लाल भूरे रंग का हो जाता है। रोगग्रस्त पौधे की मूसला जड़ों को छोड़कर मूल तुरंत सड़ जाते हैं। खेत में उचित नमी रहते हुए भी पौधों का मुरझा कर सूखनाइस बीकारी का मुख्य लक्षण है।
नियत्रण
- बिजाई से पहले बीजों को बावेस्टीन कवक नाशी दवा की 1G मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करे!
- कोणीय धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बिज़ने से पहले स्टेप्टोसाइक्लिन (1ग्राम दवा प्रति लीटर पानीमें ) बीजोपचार करे ।
- खेत में कोणीय धब्बारोग के लक्षण दिखाई देते ही स्टेप्टोसाइक्लिन का 100पी.पी.एम (1ग्राम दवा प्रति 10ली.पानी)घोल का छिड़काव 15 दिन के अंतर पर दो बार करें।
- कवक जनितरोगों की रोकथाम हेतु एन्टाकालया मेनकोजेबया काँपर ऑक्सीक्लोराइड की 2.5ग्राम दवा को प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर फसल पर 2से 3बाद 10दिन पर छिड़काव करें।
- जल निकास का उचित प्रबंध करें।
कपास में कौन सा खाद डालें ?
कपास को उचित मात्रा में पोषण देने के लिए विभिन्न प्रकार की खाद का उपयोग किया जा सकता है।
जैविक खाद: जैविक खाद मूल रूप से रासायनिक खाद से बेहतर होती है क्योंकि इसमें प्राकृतिक तत्व होते हैं जो मिट्टी के लिए अधिक फायदेमंद होते हैं। जैविक खाद में घोड़े की गोबर, भैंस की गोबर, मछली खाद, खाद बनाने के लिए खेती के अपशिष्ट आदि शामिल होते हैं।
रासायनिक खाद: रासायनिक खाद में नाइट्रोजन, पोटेशियम, फॉस्फोरस आदि होते हैं जो पौधों के विकास के लिए जरूरी होते हैं। इसमें उरिया, डीएपी, मोप, पोटेशियम नाइट्रेट आदि शामिल होते हैं।
एमओपी खाद: एमओपी खाद में नाइट्रोजन, पोटेशियम, फॉस्फोरस, सल्फर आदि होते हैं जो कपास के विकास के लिए जरूरी होते हैं। इसमें उरिया, डीएपी, मोप, पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फेट आदि शामिल होते हैं।
आपको अपनी मिट्टी के अनुसार उपयुक्त खाद का उपयोग करना चाहिए
सबसे अच्छा कपास का बीज कौन सा है
कपास के बीजों की उत्पादन विभिन्न फैक्टरों पर निर्भर करता है, जैसे कि जलवायु, मौसम, मिट्टी, बीजों की गुणवत्ता और फसल की विशेषताओं जैसे प्रतिरक्षा शक्ति आदि। इसलिए, सबसे अच्छा कपास का बीज का नाम देना संभव नहीं है। लेकिन भारतीय किसान की पसंद में RCH 776 cotton Variety है!