लोबिया: गर्मी के लिए हरा सोना

लोबिया , गर्मी व खरीफ मौसम की शीघ्र बढ़ने वाली फलीदार , पौष्टिक एवं स्वादिष्ट चारे वाली फसल है । इसकी खेती प्रायः सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है । हरे चारे के अलावा दलहन , हरी फली ( सब्जी ) व हरी खाद के रूप में , अकेले अथवा मिश्रित फसल के तौर पर उगाया जाता है । अगर इसे ज्वार , बाजरा तथा मक्की के साथ उगाएं तो इन फसलों के चारे की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है । गर्मियों में इसे दुधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ाने के लिए अवश्य खिलाना चाहिए । इसके चारे में औसतन 15-20 प्रतिशत प्रोटीन और सूखे दानों में 20-25 प्रतिशत प्रोटीन होती है । लोबिया से हरे चारे की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए ।

लोबिया
लोबिया

लोबिया अच्छी किस्म का चुनाव

सी.एस. 1. – 88 : लोबिया की यह एक उन्नत किस्म है जो कि चारे की खेती के लिए सर्वोतम है । यह सीधी बढ़ने वाली किस्म है जिसके पत्ते गहरे हरे रंग के तथा चौड़े होते हैं । इसके बीज का रंग हल्का गुलाबी भरा या हल्का भूरा होता है । यह किस्म विभिन्न रोगों व कीटों से मुक्त है । यह किस्म पीले मौजेक विषाणु रोग के लिए रोगरोधी है । इस किस्म की बिजाई सिंचित एवं कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में गर्मी तथा खरीफ के मौसम में की जा सकती है । इसका हरा चारा लगभग 55-60 दिनों में कटाई लायक हो जाता है । इसके हरे चारे की पैदावार 140-150 क्विटल प्रति एकड़ है । यदि फसल बीज के लिए लेनी हो तो लोबिया की बिजाई का सही समय मध्य जुलाई से अगस्त का प्रथम सप्ताह है ।

लोबिया की अन्य किस्में

बुन्देल लोबिया – 1 , यू.पी.सी. 5286 , यू.पी.सी. 5287.

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लोबिया के लिए मिटटी व खेत की तेयारी

लोबिया की काश्त के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है परन्तु रेतीली दोमट मिट्टी में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है । खेत की बढ़िया तैयारी के लिए 2-3 जुताईयां काफी हैं ।

लोबिया का बिजाई का समय

लोबिया की बुआई मध्य मार्च से लेकर जुलाई अन्त तक कर सकते हैं । गर्मियों में सबसे अच्छा समय मध्य मार्च से लेकर मई का पहला सप्ताह है , जिससे इसका हरा चारा , चारे की कमी वाले समय में उपलब्ध हो जाता है । खरीफ में इसकी बिजाई मध्य जून से जुलाई अन्त तक कर सकते हैं । अगर मानसून देरी से आता है , तो सिंचित इलाकों में पानी लगाकर इसकी बिजाई की जा सकती है ।

बीज की मात्रा व बिजाई का ढंग

पौधों की उचित संख्या व बढ़वार के लिए 16-20 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ उचित रहता है । पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सें मी . ( एक फुट ) रखकर पोरे अथवा ड्रिल द्वारा बिजाई करें । लेकिन जब मिश्रित फसल बोई जाए तो लोबिया के बीज की एक तिहाई मात्रा प्रयोग करें । बिजाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए । लोबिया के लिए सिफारिश किए गए राइजोबियम कल्चर से बीज का उपचार करके बिजाई करें ।

उर्वरक प्रबन्धन

दलहनी फसल होने के कारण , लोबिया में नाईट्रोजन की अधिक आवश्यकता नहीं होती । फिर भी शुरू की अच्छी बढ़वार के लिए 10 किलोग्राम शुद्ध नाईट्रोजन ( 22 किलोग्राम यूरिया 46 प्रतिशत ) प्रति एकड़ बिजाई के समय डालें । बिजाई से पहले सिंचित इलाकों में 25 किलोग्राम फास्फोरस ( 157 किलोग्राम सिंगल सुपरफास्फेट ) तथा बारानी क्षेत्रों में 12 किलोग्राम फास्फोरस ( 75 किलोग्राम सिंगल सुपरफास्फेट ) पोरा या ड्रिल से डालें । मिश्रित खेती में उर्वरक फसल की सिफारिश के अनुपात में ही डाले ।

खरपतवार प्रबन्धन

गर्मी में बोई गई फसल में एक निराई – गुड़ाई पहली सिंचाई देने के बाद बत्तर आने पर करें मानसून की वर्षा पर बोई गई फसल में एक गुड़ाई बिजाई के लगभग 25 दिन बाद करें । सिंचाई और जल निकास : मार्च – अप्रैल में बोई गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 20-25 दिन बाद तथा मई में बोई गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 15-20 दिन बाद करें । आगे की सिंचाईयां 15-20 दिन के अन्तराल पर करें । इस तरह कुल मिलाकर 3-4 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है । बरसात के मौसम में बीजी गई फसल में आमतौर पर सिंचाई की जरूरत नहीं होती है । जल – निकास का उचित प्रबन्ध करना आवश्यक है ।

कीड़ों से बचाव

सूखे मौसम में लोबिया पर हरा तेला आक्रमण करता है । इसकी रोकथाम के लिए 200 मिलीलीटर मैलाथियॉन ( 50 ई.सी. ) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें । लेकिन यह विशेष ध्यान रखें कि छिड़काव के 7-15 दिन बाद तक इस फसल का हरा चारा पशुओं को ना खिलाएं ।

कटाई व चारे की पैदावार

लोबिया की हरे चारे के लिए कटाई 50 प्रतिशत फूल आने से लेकर 50 प्रतिशत फलियां बनने तक पूरी कर लेनी चाहिए । अन्यथा इसके बाद इसका तना सख्त व मोटा हो जाता है और चारे की पौष्टिकता व स्वादिष्टता दोनों ही प्रभावित होती है ।

गर्मियों में इससे हरे चारे की उपज 130-135 क्विटल व खरीफ में 150-155 क्विंटल प्रति एकड़ मिल जाती है । इसके हरे चारे को अकेले खिलाने की बजाए तूड़ी या ज्वार , बाजरा , मक्की के हरे चारे या इनकी कड़वी के साथ मिलाकर खिलाएं । दाने की पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ मिल जाती है ।

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