गन्ना में खरपतवार की रोकथाम कैसे करे?

हरियाणा प्रान्त में उगाई जाने वाली नकदी फसलों में गन्ने का प्रमुख स्थान है । यह एक बहुवर्षिय फसल है जो शरद ( अक्टूबर ) व बसन्त ( फरवरी – मार्च ) में बोई जाती है । गन्ना फसल में खूड़ों का ज्यादा फसला , सहज जमाव , ज्यादा खाद व पानी तथा लम्बी फसल अवधि अक्सर ज्यादा खरपतवारों को निमंत्रण देते है । खरपतवार भूमि से लगभग 20 से 25 किलो नाइट्रोजन तथा 30 प्रतिशत तक जल ले लेते है । ये गन्ने के साथ प्रकाश , स्थान एंव वायु के लिए भी मुकाबला करते है । फलस्वरुप गन्ने की पैदावार व गुणवता में कमी आ जाती है ।

गन्ना में खरपतवार
गन्ना में खरपतवार

मुख्य खरपतवार

गन्ना फसल में आमतौर पर निम्नलिखित खरपतवार पाये जाते हैं ।

  1. घास जाति वाले : मकड़ा , मंघाना , सांवक , चिड़ियों का दाना एंव तकड़ी घास ।
  2. चौडी पत्ती वालेः सांठी दूधी , नूणिया , पलपोटन , भाखड़ी , चौलाई , तांदला , कनकुआ , कागारोटी , जलभंगडा , कचभोड़न ( मकोय ) गाजर घास एंव बेल ।
  3. वहुवर्षीय : दूब बरु , कांस , डीला ( मोथा ) व हिरण खुरी ।

गन्ने की बिजाई के बाद पहले डीला , साठी , नूणिया , पलपोटन , मकोय व चौलाई आदि घास आते है इसके बाद बरसात का मौसम शुरु होते ही घास जाति वाले खरपतवार जैसे कि सावक , मकडा व तकडी घास इत्यादि उगने शुरु हो जाते है ।

खरपतवार नियन्त्रण का सही समय

खरपतवार नियन्त्रण का सही समय फसल की बिजाई के समय पर निर्भर करता है । बसंतकालीन फसल में खरपतवार नियन्त्रण का सही समय बिजाई के 120 दिन बाद तक व पछेती फसल में 60 दिन तक आंका गया है । जबकि यह मोढ़ी फसल में 90 दिन ( फुटाव का समय ) तक उचित पाया गया है । यदि इस दौरान गन्ने की फसल को खरपतवारों से न बचाया जाए तो बाद की अवधि में किए गए सभी प्रयास व्यर्थ रहते है तथा गन्ने की पैदावार में आई कमी की भरपाई हो जाती है । खरपतवार नियन्त्रण न करने का नुकसान सबसे ज्यादा पछेती फसल में पाया जाता है ।

खरपतवार नियन्त्रण विधियां

निराई – गुड़ाई : खुरपा व कसौला चलाकर गुड़ाई करना सबसे उत्तम है । परन्तु समय का अभाव तथा मजदूरों का ना मिलना इस क्रिया में आड़े आता है । इसके अतिरिक्त मौसम व खेती की दशा भी इस क्रिया में बाधा डालती है । और इस विधि से जो खरपतवार गन्ने के अन्दर है उसका नियन्त्रण नही हो पाता है । इसलिए किसी एक ऐसी | विधि की जरुरत है जो पूरे फसल चक्र के दौरान खरपतवारों का नियन्त्रण कर सकें । मोढ़ी फसल में गन्ने की सूखी पत्तियों की 12-15 सै . मी मोटी तह बिछाकर काफी हद तक खरपतवारों को नियन्त्रण में रखा जा सकता है । शरु की अवस्था में 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर तथा बाद में हल्की गुड़ाई करके भी खरपतवार कम लागत में नियंत्रित किये जा सकते है । परन्तु आम तौर पर देखा गया है कि कि जब गन्ने की गुड़ाई का समय होता है तो गेहूँ की कटाई , धान की पनीरी की बिजाई इत्यादि काम में किसान व्यस्त हो जाते है व गुड़ाई के लिए मजदूर मिलना कठिन हो जाता है । ऐसी अवस्था में खरपतवारनाशी के प्रयोग से इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिल सकता है ।

अन्त : ( मिलवा ) फसलें उगाकर

गन्ने में अन्तः फसलें उगाना भी खरपतवारों की संख्या को काफी हद तक नियंत्रित करता है । शरदकालीन फसल में प्याज , लहुसन , आलू , गेहॅू , सरसों इत्यादि अन्तः फसल उगाकर खरपतवारों को नियंत्रित कर सकते है ।

फसल चक्र अपनाकर

जिन खेतों में बार – बार गन्ना उगाया जाता है , वहां खरपतवारों की समस्या ज्यादा होती है । एक सही फसल चक्र अपनाकर जिसमें विभिन्न प्रकार की फसलों को समायोजित करके खरपतवारों की समस्या काफी हद तक कम की जा सकती है । विभिन्न परीक्षणों के आधार पर निम्नलिखित फसल चक्र उपयोगी पाये गए है ।

  • गन्ना ( नौलफ ) – मोढ़ी – सुरजमुखी / मक्की / प्याज – धान / मटर – धान
  • धान – आलू – गन्ना ( नौलफ ) – मोढ़ी – सूरजमुखी / गेहूँ – धान

सूरजमुखी , सोयाबीन , लोबिया , बरसीम व ज्वार आदि फसलों को भी समायोजित करके खरपतवार कम लागत में नियंत्रित किये जा सकते है ।

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फसल का उचित प्रबन्धन

फसल का उचित प्रबंन्धन एंव देखभाल भी खरपतवार | नियंत्रण का आवश्यक अंग है । जल्दी व बराबर जमाव और फसल की जल्दी बढ़वार खरपतवारों को बढ़ने से रोकता है । जल्दी व बराबर जमाव के लिए ताजा व स्वस्थ बीज को फफूंदीनाशक दवा द्वारा उपचारित करके सही नमी में बिजाई करनी चाहिए । अच्छे जमाव के बाद पानी व उचित खाद डालकर जल्दी बढ़वार ली जा सकती है ।

रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण

आमतौर पर गन्ने में विभिन्न प्रकार व लम्बे फसल चक्र की वजह से कोई भी एक खरपतवारनाशक एक बार में संतोषजनक नियंत्रण नही कर सकता । इसलिए खरपतवार नियंत्रण के लिए गन्ना उगने के बाद के खरपतवारनाशक व गन्ना उगने से पहले के खरपतवारनाशक व गोडाई दोनो क्रियाओं को समायोजित करना अति आवश्यक है उदाहरणतः एट्राजिन का उपयोग संकरी व चौड़ी पती वाले खरपतवारों को नियंत्रण कर सकता है । परन्तु इसमें डीले ( मोथा ) का नियन्त्रण नही हो पाता इसलिए डीले के नियंत्रण के लिए फसल उगने के बाद के बाद के खरपतवारनाशक ड़ालने पड़ेगें । गन्ना फसल में यहां बतलाए जा रहे खरपतवारनाशकों की विभिन्न परिस्थितियों में सिफारिश की जाती है ।

एट्राजिन ( एट्राटाफ ) 1.6 किलो ग्राम या मैट्रिब्यूजीन ( सैन्कोर ) 600-800 ग्राम को प्रति एकड़ 250-300 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के तुरन्त बाद छिड़काव करना चाहिए । ध्यान रहे कि भूमि की उपरी सतह में उचित मात्रा में नमी होना अति आवश्यक है । कम नमी की अवस्था में इन खरपतवारनाशकों का प्रभाव कम हो जाता है । यदि बिजाई के समय एट्राजीन नही डाल पाते तब पहली सिंचाई के बाद गोडाई करें तथा दूसरी सिचाई के 4-5 दिन बाद एट्राजीन का खड़ी फसल में छिड़काव कर सकते है । इससे गन्ना फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । यह तरीका सबसे सस्ता व प्रभावशाली पाया गया है । जून के महीने में 2,4 – डी सोडियम साल्ट एक किलो प्रति एकड़ के हिसाब से 250 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए ।

केंचुआ खाद से करें अपने पौधे को ग्रोथ, खाद डालने का सही तरीका

यदि गन्ना फसल में दूब व मोथा की समस्या हो तब 2,4- ड़ी इस्टर या अमाईन दवा का 400 ग्राम प्रति एकड़ 200-250 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । आवश्यकतानुसार 15 दिन पश्चात् दोबारा छिड़काव करें । ध्यान रहे कि 2,4 – ड़ी इस्टर मोथा घास को केवल ज़मीन के उपर से ही नष्ट करता है ।

पिछले कुछ वर्षो से गन्ने के पौधे पर लिपटने वाली बेल की समस्या बढ़ती जा रही है । अगर खेत में बेल व अन्य चौडी पती वाले खरपतवार ज्यादा हो तो आलमिक्स 8 ग्राम या 2 , 4- डी इस्टर / अमाईन की 400 मि.ली. की मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें ।

मोथा घास की रोकथाम के लिए सेम्परा 75 प्रतिशत डब्लयू पी की 36 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें । यह छिडकाव मोथा की 3-6 पती की अवस्था में ही करें ।

सावधानियां

खरपतवारनाशक के सही असर के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है ।

  • फसल में उगे हुए खरपतवारों के आधार पर ही दवाई का चुनाव करें ।
  • दवाई की पूरी मात्रा सिफारिश किए गए समय पर ही प्रयेग करें ।
  • दवाई का घोल पहले थोडे पानी में तैयार करके उसे पम्प की ढोली में डालने से पहले अच्छी तरह हिला लें ।
  • खरपतवारनाशक छिड़कते समय मिटटी में उचित नमी होना अति आवश्यक है ।
  • खरपतवारनाशक के छिडकाव हेतु फलैट फैन नोजल का ही इस्तेमाल करें । कट नोजल का प्रयोग न करें ।
  • जिस दिन मौसम साफ हो व हवा की गति तेज ना हो , उसी दिन स्प्रे करें ।
  • दवाई के छिडकाव के समय नोजल की उचाई जमीन से 1-2 फुट तक रखें । ज्यादा उचाई रखने से दवाई हवा के साथ उड़ जाती है ।
  • गन्ने के साथ अन्तर्वर्ती फसल लेने पर निराई – गुड़ाई द्वारा ही खरपतवारों पर नियंत्रण करें ।

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