अपने खेत की मिट्टी परीक्षण केसे करवाए | जाने नमूना लेने का तरीका

मृदा परीक्षण हेतु मृदा नमूना कब और कैसे ले:- मृदा एक प्राकृतिक संसाधन है जो कि कृषि उत्पादन के लिए एक मूलभूत आवश्यकता है । यह बीजांकुरण व पौध बढ़वार के लिए एक आधार है जो अपने भीतर पोषक तत्वों एवं जल को ग्रहण कर बीजों एव पौधों को उपलब्ध करवाती है । मृदा की प्रकृति का पता लगाने के लिए मृदा के विशिष्ट गुणों का अध्ययन जरूरी है साथ ही मृदा की उर्वरकता क्षमता की परख करना भी जरूरी है ।

मिट्टी परीक्षण , भूमि को पोषक तत्व प्रदान करने की क्षमता का निर्धारण करने की एक रासायनिक विधि है जिससे भूमि उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा ज्ञात होती है तथा फसल हेतु इससे उपलब्ध पोषक तत्वों के आधार पर उर्वरकों की मात्रा विभिन्न फसलों के लिए दी जाती है ।

रासायनिक परीक्षण के लिए मिट्टी के नमूने एकत्रित करने के निम्न उद्देश्य हैं :

भूमि की उर्वरा शक्ति की जानकारी तथा फसलों में रासायनिक खादों के प्रयोग की सही मात्रा निर्धारित करने के लिए । . . ऊसर तथा अम्लीय भूमि के सुधार तथा उसे उपजाऊ बनाने का सही तरीका जानने के लिए । बाग व पेड़ लगाने हेतु भूमि की अनुकूलता तय करने के लिए । मृदा की संरचना जानकर उसकी जल धारण एवं जल निकास क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए ।

मृदा का नमूना कब ले

मिटटी की जाँच
मिटटी की जाँच

वैसे तो मिट्टी का नमूना कभी भी ले सकते हैं , परन्तु शुष्क मौसम में फसल की कटाई के बाद खाली जमीन से खासतौर पर मई और अक्टूबर माह में खरीफ व रबी की बुवाई से एक से डेढ़ माह पूर्व नमूना लेना प्रायः बेहतर व आसान रहता है ताकि बुवाई से पूर्व परिणाम प्राप्त हो जायें । आवश्यकता हो तो खड़ी फसल में से भी कतारों के बीच से नमूना लेकर परीक्षण के लिए भेज सकते हैं , ताकि खड़ी फसल में पोषण सुधार किया जा सके । यदि सघन कृषि की जा रही है तो नमूने एक फसल चक्र के पूरा होने पर प्रति वर्ष लेना चाहिए । अन्यथा तीन वर्ष में एक बार मृदा परीक्षण करवाना पर्याप्त रहता है ।

मृदा नमूना लेने के लिए आवश्यक उपकरण एवं सामग्री

  • खुर्पी
  • फावड़ा
  • नाली बरमा
  • पेंच बरमा
  • कपड़े या पॉलिथीन की थैली आदि ।

नमूनों की संख्या

नमूने लेने में क्षेत्रीय विभिन्नताओ को ध्यान में रखना आवश्यक है.

लेने प्राथमिक नमूना

क्षेत्र के भली भांती विभाजित भागों से या यादृच्छिक ढंग से मृदा नमूना को प्राथमिक नमूना कहते हैं । समतल क्षेत्र के 2 हैक्टेयर , 2-10 हैक्टेयर , 10-20 हैक्टेयर क्षेत्रफल से नमूनों की संख्या क्रमशः 15 , 25 एवं 35 रखनी चाहिए जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेतों से नमूने खेत के सभी भागों ( बाहर , मध्य , अन्दर ) से 15-20 अलग – अलग स्थानों से एकत्रित करना चाहिए । अतः एक ही समस्या से ग्रस्त खेतों या फार्म से कम से कम 8 या 10 नमूने एकत्र करना चाहिए । प्रत्येक 1 एकड़ ( 4000 वर्ग मी . ) के लिए एक मिश्रित नमूना लेना पर्याप्त है ।

चित्र प्रक्षेत्र से मृदा नमूना लेने हेतु निशान चिन्हित करना

मिट्टी का नमूना कैसे लें ?

फसलों के लिए : मिट्टी परीक्षण के लिए किसी भी खेत से लिया गया नमूना उस सारे खेत का प्रतिनिधि नमूना होना चाहिए ।

  1. खेत को उसकी स्थिति ( समतल , ऊँची , नीची , ढलान ) एवं मिट्टी की किस्म के अनुसार बॉट लेते हैं । इसके बाद नमूना लेने के लिए लगभग एक हैक्टेयर क्षेत्र से 15-20 स्थानों का रेन्डम चयन करते हैं ।
  2. प्रत्येक चयनित स्थान की ऊपरी सतर ( लगभग 2 से.मी. ) से घास फूस कंकड़ पत्थर आदि साफ कर लेते हैं ।
  3. निर्धारित स्थान पर खुरपी या फावड़े से 15 सेमी . गहरा अंग्रेजी के ट आकार का गड्ढा खोद लेते हैं ।
  4. स्थाई चारागाह या घास के मैदान , कम गहरी जड़ वाली फसलों के लिए 8-10 से . मी . गहराई तक नमूना लेना चाहिए ।
  5. गड्ढे की एक दीवार से खुरपी की सहायता से लगभग एक अगुल मोटी ( लगभग 2 से.मी. ) मिट्टी की परत निकाल लेते है ।
  6. इस मिट्टी को साफ सुथरी तगारी , ट्रे , कपड़ा या पॉलिथिन शीट पर एकत्रित कर लेते हैं ।
  7. इसी प्रकार खेत के बाकी 15-20 निशानदेह ( चयनित ) स्थानों से भी मिट्टी का नमूना ले लेते हैं ।
  8. एक खेत के सभी नमूनों को एक जगह एकत्रित करके आपस में अच्छी तरह मिला लेते हैं । मिले हुए नमूनों की मिटी में से घास – फूस , जड़ें . कंकड़ – पत्थर निकाल लेते हैं और साफ मिट्टी को तगारी या कपड़े पर मोटी परत के रूप में फैला लेते हैं ।
  9. फैलाई हुई मिट्टी को चार भागों में बॉट ले तथा आमने सामने के दो भागों की मिट्टी को रखकर बाकी फेंक देते हैं ।
  10. इस प्रक्रिया को तब तक दोहराते हैं जब तक मिट्टी का कुल नमूना लगभग 500 ग्राम न रह जाए ।
  11. यदि मिटटी गीली हो तो उसे छ्या में सुखाकर थैली में भरना चाहिए.

ऊसर भूमि से नमूना लेना

  1. पहला ऊपरी सतह 0-15 से.मी. गहराई तक का नमूना उर्वरक सिफारिश हेतु लेने की विधि के अनुसार ही लेते हैं । इसका उपयोग जिप्सम की आवश्यकता निकालने व उर्वरक सिफारिश दोनों हेतु किया जाता है ।
  2. सुधार की प्रक्रिया उचित ढंग से हो इसके लिए मृदा की गहराई का अध्ययन भी बहुत ही महत्वपूर्ण होता है । अतः इस हेतु चार विभिन्न गहराई से मृदा नमूना लिया जाना चाहिए । यदि मृदा समान रूप से लवण प्रभावित है तो एक एकड़ ( 4000 वर्ग मी . ) क्षेत्र से एक या दो गड्डे एक मीटर गहराई के खोदकर निम्नानुसार मृदा नमूना ( प्रत्येक गहराई का आधा किग्रा . ) लिया जाना चाहिए । पहला नमूना : 0-15 से.मी. दूसरा नमूना : 15-30 से.मी. 60-100 से.मी. तीसरा नमूना : 30-60 से.मी. चौथा नमूना : हर नमूने को अलग – अलग साफ कपड़े की थैली में भरें ।

बाग व वृक्ष लगाने के लिए नमूना

इस उद्देश्य हेतु मिट्टी का लगभग 500 ग्राम नमूना 0–15 , 15-30 , 30–60 , 60–90 , 90–120 , 120-150 और 150-200 सेमी . गहराई से अलग अलग लेकर उन्हें थैलियों में डालकर और सूचना कार्ड लगा कर प्रयोगशाला में जॉच के लिए भेजते हैं । सामान्य तौर पर एक गड्ढ़ा प्रति बीघा पर्याप्त रहता हैं

मिट्टी परीक्षण के लिए सूचना कार्ड का नमूना

किसान का नाम …………………………………..
ग्राम …………………………………….
डाक खाना जिला खेत का खसरा न . / पहचान …………………………………………..
नमूने की गहराई से.मी. ……………………………………….
सिंचित या असिंचित ………………………………………………….
पिछली फसल फसल जिसके लिए सिफारिश चाहिए …………………………………….
समस्या किसी भी प्रकार की महसूस की है तो ………………………………………………..
नमूना लेने की तिथि ………………………………….

मिट्टी का परीक्षण निम्न मापदंडों के आंकलन के लिए किया जाता है जैसे : विद्युत चालकता ( 1 : 2 के अनुपात में ) की व्याख्या

विद्युत चालकताव्याख्यासिफारिशें
1.0 से कमसामान्य मिट्टी , किसी भी फसल के लिए उपयुक्तकोई सुधार की आवश्यकता नहीं है ।
1.0 – 2.0सीमांत लवणीणता हैं , फसलों के बीज अंकुरण के लिए हानिकाकर हो सकती है ।भारी मिट्टियों में सुधार की आवश्यकता हो सकती है ( हल्की मिट्टी में बांछनीय )
2.0 से अधिकअत्यधिक लवणीय है , फसलों के लिए हानिकारक हो सकती है ।भारी मिट्टियों में निश्चित रूप से सुधार की जरूरत है । विशेष रूप से जब संवेदनशील व अर्ध लवण- सहनशील फसलें उगानी हों ।
विद्युत चालकता

मिट्टी अभिक्रिया ( 1 : 2 के अनुपात में ) की व्याख्या

अभिक्रिया (pH)व्याख्यासिफारिशें
6.0 से कमअम्लीय मिट्टी है , कुछ फसलों के लिए अनुपयुक्त हो सकती है ।चूना व कार्बनिक खादों से सुधार की आवश्यकता होगी ।
6.0 से 8.5सभी फसलों के लिए उपयुक्त है ।कोई सुधार की आवश्यकता नहीं है ।
8.6 से 9.0क्षारीय है , कुछ फसलों के लिए हानिकारक हो सकती है ।हल्की मिट्टी में वांछनीय । इसके लिए जिप्सम व कार्बनिक खादों के उपयोग की आवश्यकता है.
9.0 से अधिकअत्यधिक क्षारीय है , फसलों के लिए हानिकारक हो सकती है ।मिट्टियों में निश्चित रूप से सुधार की आवश्यकता है । जिसके लिए जिप्सम , हरी खाद व कार्बनिक खादों का उपयोग किया जाना चाहिए
मिट्टी अभिक्रिया

यह भी देखे…..

मिटटी उर्वरकता ( प्राथमिक तत्वों ) की व्याख्या

मिट्टी उर्वरकताजैविक कार्बनउपलब्ध पोषक तत्व ( कि.ग्रा . / हे . )
इट्रोजन
फास्फोरसपोटाशव्याख्या
निम्न 0.50 से कम 280 से कम 11 से कम120 से कमपोषक तत्वों की कमी ।
मध्यम0.5 से 0.75280 से 56011 से 5120 से 280पोषक तत्व सामान्य है ।
उच्च0.75 से अधिक560 से अधिक25 से अधिक280 से अधिकपोषक तत्वों की उपलब्धता अधिक है ।
मिटटी उर्वरकता

गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का स्तर नीचे दिए गए मापदंडों से कम होने पर संबधित उर्वरक के इस्तेमाल की आवश्यकता है ।

पोषक तत्वमिट्टी में कमी के स्तर ( मि.ग्रा . / कि.ग्रा . )
गंधक10
लोहा4.5
मैग्नीज2.0
जस्ता0.6
बेरोन0.5
कॉपर0.2
मॉलीब्डेनम0.1
पोषक तत्वों

समस्या से संबंधित : – लवणता , अम्लता , क्षारीयता व प्रदूशण की जांच की जाती है जो फसलोत्पादन को प्रभावित करती है।
पोषक तत्वों की उपलब्धता : – मिट्टी परीक्षण का यह मुख्य मापदंड है जिसमें विभिन्न पोषक तत्वों की उपलब्ध मात्रा का पता लगाया जाता है । जैसे – नाइट्रोजन , फास्फोरस , पोटाश , गंधक , जस्ता , लोहा , कॉपर , मैग्नीज व बोरोन आदि ।
सहायक परीक्षण : – इस वर्ग में वे मापदंड आते हैं जो पोशक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं तथा उर्वरक व अन्य सुधारक की मात्रा इन पर निर्भर करती है । इसमें कैल्शियम कार्बोनेट एवं मिट्टी का गणाकार आदि शामिल है ।
विशे परीक्षण:- इस प्रकार के परीक्षण विशेश परिस्थितियों में किए जाते हैं , जैसे कि मिट्टी के स्वास्थ्य संबंधी कुल जैविक मास बीमारियों के कारक सूत्रकृमि व कुछ रसायन परीक्षण जो कि फसलोंत्पादन में बहुत हानि पहुंचाते हों ।

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