अल नीनो से मॉनसून पर ख़तरा गर्मी भी तोड़ेगी रिकॉर्ड

देश में नौ साल तक लगातार अच्छा मानसून रहने के बाद अब एक बार फिर से अल नीनो की परिस्थितियां निर्मित होती नजर आ रही हैं। इससे इस साल हमारे यहां गर्मियों का मौसम शुष्क व बेहद गर्म रह सकता है और इसी वजह से इस वर्ष ज्यादा लू चलने की भविष्यवाणी भी की गई है। लेकिन इससे भी बुरी खबर यह हो सकती है कि अल नीनो के प्रभाव की वजह से मानसून खराब हो सकता है।

क्या है अल नीनो?

अमेरिकन जियोसाइंस इंस्टीट्यूट के अनुसार अल नीनो (और इसी तरह ला नीना भी) का संबंध प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय – समय पर होने वाले बदलावों से है। अल नीनो एक चक्रीय पर्यावरणीय स्थिति है, जो प्रशांत महासागर के भूमध्य क्षेत्र में शुरू होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो अल नीनो वह प्राकृतिक घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर का गर्म पानी उत्तर और दक्षिण अमेरिका की ओर फैलता है और फिर इससे पूरी दुनिया में तापमान बढ़ता है।

इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। यह तापमान सामान्य से कई बार 0.5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा हो सकता है। ये बदलाव अमूमन 9 से 12 माह तक होते हैं। लेकिन कई बार लंबे भी चलते हैं। अल नीनो की स्थिति हर 4 से 12 साल में आती रही है, लेकिन जीपी शर्मा का कहना है कि अब इसकी फ्रिक्वेंसी 2 से 7 साल हो गई है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि कोई भी दो अल नीनो बिल्कुल एक के बाद एक नहीं आते हैं।

अल नीनो से मॉनसून पर ख़तरा

सूखा अल नीनो का सर्वाधिक प्रत्यक्ष असर बारिश के पैटर्न पर पड़ता है और भारत की मानसूनी बारिश भी इसके असर से बची नहीं रह पाती। इस वजह से बारिश कम होती है। इसमें सामान्य बारिश की संभावना केवल 10 फीसदी तक होती है।

ऐसा ही असर इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और आसपास के क्षेत्रों में हो सकता है। खाद्य संकट भारत जैसे विकासशील देशों में भी लगभग पूरी खेती बारिश पर निर्भर है। बारिश कम होने से फसल का उत्पादन कम होने की वजह से एक बड़े वर्ग के सामने समस्या उत्पन्न हो सकती है। अफ्रीका महाद्वीप के गरीब देशों में तो हालात और भी खराब हो सकते हैं। महंगाई पिछले साल दुनिया महंगाई की समस्या से परेशान रही।

अल नीनो की परिस्थितियां

अमेरिका की मौसम एजेंसी नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के ताजा पूर्वानुमान के अनुसार इस वर्ष मई से जुलाई के बीच अल नीनो की परिस्थितियां छा सकती हैं और इसका असर आगामी मानसून पर पड़ सकता है।

अल नीनो के 3 ग्लोबल फायदे

वैश्विक तौर पर देखें तो वैज्ञानिक अल नीनो के कुछ फायदे भी गिनाते हैं-

नॉर्थ अटलांटिक क्षेत्र में इस वजह से समुद्री और चक्रवाती तूफान अपेक्षाकृत कम आते हैं। हालांकि तूफानों की तीव्रता में कमी नहीं आती।

दक्षिण कनाडा और उत्तरी अमेरिका के वे क्षेत्र, जहां हांड़ कंपाती सर्दी पड़ती है, अल नीनो की वजह से ठंड से राहत मिलती है।

दुनिया के कुछ हिस्सों, जैसे कि दक्षिणी – पूर्वी अफ्रीका में शुष्क मौसम की वजह से मलेरिया जैसी बीमारियां कम हो जाती हैं।

भारत में अल नीनो से 10 बार पड़ा सूखा

अल नीनो का मतलब यह नहीं है कि सूखा होगा ही। 40 % अल नीनो में सूखे की स्थिति नहीं आई। भारत में वर्ष 1951 के बाद से 10 बार ऐसे मौके आए जब अल नीनो की वजह से सूखे की स्थित उत्पन्न हुई। हालांकि कई अल नीनो ऐसे भी रहे, जब सूखा नहीं पड़ा। कई बार ऐसे सूखे की स्थिति भी निर्मित हुई, जिसकी वजह अल नीनो नहीं थी। •

सामान्य से 10 % कम बारिश होने पर माइल्ड ड्राउट, 15-20 % कम होने पर मॉडरेट और 20 % से कम बारिश होने पर सिवियर ड्राउट की स्थिति होगी। भारत में सबसे बुरा अल नीनो साल 1972 का रहा, जब सामान्य से 24 फीसदी कम बारिश हुई थी। इसके बाद 2009 रहा, जब 22 फीसदी कम बारिश हुई। 1982 में 14.5 फीसदी कम बारिश हुई।

अंतिम विचार

अमेरिका की मौसम एजेंसी एनओएए के ताजा पूर्वानुमान के अनुसार इस वर्ष अल नीनो की परिस्थितियां पैदा होने की आशंका है मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो इस वर्ष वसंत का एहसास हुए बगैर जिस तरह से गर्मी बढ़ती जा रही है, उससे ऐसा लग रहा है कि हमारे यहां साल 1998 की परिस्थितियां बन सकती हैं, जब भारत में सामान्य से 9.4 फीसदी कम बारिश हुई थी।

Some Error