सरसों की खेती में किसानो के लिए अपार संभावनाएं हैं। दिन-दिन देश-विदेश में सरसों की मांग बढ़ रही है. रबी की फसलों में सरसों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है. भारत के कई राज्य जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश में मुख्यता से की जाती है। सरसों के बीज में तेल की मात्रा 30 से 48 प्रतिशत तक पायी जाती है। सितम्बर महीने से किसान सरसों की बुवाई शुरू कर देते हैं.सरसों एक कम पानी में भी अधिक पैदावार देने वाली फसल मानी जाती है। तिलहनी फसलों में सरसों एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
सरसों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
सरसों की फसल के लिए शरद ऋतु, ठंडी जलवायु और कम पानी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती रबी सीजन में की जाती है। और औसत तापमान 26 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड के लिए उपयुक्त है। सरसों की बुवाई के समय 15 से 25 सेंटीग्रेड तापमान, कटाई के समय 25 से 30 डिग्री तापमान अच्छा माना जाता है।
सरसों खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
वैसे तो सरसों की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जाती है। लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 5.8 से 6.7 तक सबसे उपयुक्त होता है। यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक हो तो प्रत्येक तीसरे वर्ष 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम/पाइराइट का प्रयोग करना चाहिए। मई-जून के महीने में मिट्टी में जिप्सम/पाइराइट मिलाकर अच्छी तरह जोत लें।
खेत की तैयारी
सरसों की खेती की तैयारी के लिए खरीफ की फसल की कटाई के बाद पलाऊ से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए। बाद में कल्टीवेटर से ढोलो को तोड़ दे। नमी संरक्षण के लिए पाटा लगा लेना चाहिए। अगर खेत में खेत में दीमक, चितकबरा और अन्य कीटो का प्रकोप अधिक हो तो, अन्तिम जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से किट प्रकोप के लिए अंतिम जुताई के साथ खेत मे मिलना चाहिए।
उत्पादन बढ़ाने के लिए अंतिम जुताई से पहले वर्मीकल्चर या पीएबी कल्चर में प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। बीजों को सीड ड्रिल से कतारों में बोयें। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी से अधिक न रखें। अच्छे बीज अंकुरण के लिए बीज को 2-3 सेमी से अधिक गहरा न बोयें।
बीज की मात्रा बीजोपचार और बुआई का समय
मात्रा – 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें।
बीजोपचार अवश्य करें, इससे रोग फैलने का भय नहीं रहता है। बीजोपचार हेतु कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम, थीरम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. का प्रयोग करें। सरसों की खेती के लिए बुवाई का उचित समय अक्टूबर से नवंबर के बीच है।
1.जड़ सड़न रोग से बचाव हेतु – बुवाई से पूर्व फफूंदनाशक बैबस्टीन वीटावैक्स, कैप्टान, प्रोवैक्स 3 से 5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।
- कीड़ों से बचाव के लिए – इमिडाक्लोरपिड 70 WP @ 10 मिली प्रति किलो बीज से उपचारित करें।
- कीटनाशी उपचार के बाद मे-फास्फोरस घुलनशील जीवाणु खाद एवं एजेटोबैक्टर दोनों 5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से उपचारित कर बीज बोयें।
सरसों की प्रमुख उन्नत किस्में
खेती में अधिक उपज के लिए अच्छे और उन्नत बीजों का होना बहुत जरूरी है। सरसों की खेती के लिए हमेशा प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें। सरसों की कुछ किस्में जलवायु और मिट्टी और पानी की उपलब्धता के आधार पर विकसित की जाती हैं।
देखें सरसों की प्रमुख उन्नत किस्में-
सरसों की उन्नत किस्मों में रोहिणी, पूसा सरसों 27, पूसा विजय, RH 725, टी 59 (वरूणा), वरूणा, पूसा गोल्ड, RH 749, जे. एम.-1(जवाहर) जे. एम.-2, पूसा जय किसान इत्यादि प्रमुख हैं।
पीली सरसों की खेती
मसालों की पहली पसंद पीली सरसों का उत्पादन क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ा है। बाजार में पीली सरसों की अच्छी मांग और अधिक कीमत मिलने से किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। मशालों के लिए पीली सरसों का प्रयोग किया जाता है। पीली सरसों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
उन्नत किस्मे– K- 88, पीतांबरी और नरेन्द्र सरसों-2 आदि
फसल चक्र अपनाएं
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और अधिक उपज देने के लिए फसल चक्र बहुत महत्वपूर्ण है। फसल चक्र अपनाने से फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सरसों की खेती में फसल चक्र अपनाकर साथी किसान अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
फसल चक्र जैसे-
मक्का-सरसों-भिंडी
धान-गेंहू/सरसों
धान- सरसों-मूंग
सोयोबीन-प्याज- परती
सिंचाई, निराई-गुड़ाई और उर्वरक प्रबंधन
सिंचाई –
पहली – 30-35 दिनों बाद
दूसरी – फूल आने पर, सरसों की कलियों की अच्छी विकास के लिए
तीसरी – जब फली में दाना भरने लगे
उर्वरक
पहली जुताई के समय सड़ी हुई गोबर की खाद डाल दें।
रासायनिक खाद का उपयोग अपने खेत की मिट्टी जांच के अनुसार ही करें।
कृषि विशेषज्ञों की सलाह से पौधों की बढ़वार के लिए यूरिया का प्रयोग करें।
निराई-गुड़ाई- बुवाई के तीसरे सप्ताह के बाद अत्यंत आवश्यक है।
सरसों में कीट रोग प्रबंधन
सरसों की फसल में चूर्णिल आसिता, पत्ती झुलसा, एवं तुलसीता रोग, अल्टरनेरिया आदि रोग लगते हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिए मैनकोजेब 75% फसल में 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण की विधि –
आरा मक्खी –
लक्षण – पत्ते के किनारे को खा जाते है.
दवा – मैलाथियान 50 ई.सी.
मात्रा – 1.5 लीटर को 700 से 800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से
माहू –
लक्षण –कोमल तनों, पत्तियों, फूल एवं नयी फलियों के रस चुसना
दवा – फेंटोथियान 50 ई.सी., डाईमेथोएट 30 ई.सी.
मात्रा – एक लीटर मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से
झुलसा रोग
लक्षण – फलियों और पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे
उपचार – 50 दिनों बाद रिडोमिल (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव
तना सड़न
लक्षण – तनों पर भूरे रंग के धब्बे, ग्रसित पौधे अंदर से खोखले, किसान इसे पोला रोग के नाम से भी जानते हैं।
उपचार – बीज को बाविस्टीन से 3 ग्राम/किलो की दर से उपचारित कर बुआई करें।
लागत एंव कमाई
सरसों की फसल की लागत अन्य रबी फसलों की तुलना में कम होती है। क्योंकि सरसों की फसल को कम पानी की जरूरत होती है। सरसों की फसल में किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर 25-30 हजार रुपए खर्च करना पड़ता है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20-25 क्विंटल हो जाता है। सरसों के मंडी भाव को देखें तो किसानों को एक से दो लाख रुपये की शुद्ध आय होती है। भारत में सरसों का उत्पादन मांग से कम है। यही वजह है कि सरसों तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं।
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