ज्वार, गर्मी व खरीफ मौसम की सबसे महत्वपूर्ण चारे की फसल है. यह पोषक तत्वों से भरपूर स्वादिष्ट चारा है. जिसे जानवरों को हरा या सुखाकर व साईलेज बनाकर खिलाया जा सकता है.
किस्म | सिफारश किया गया क्षेत्र | गुण |
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हरियाणा चरी 136 | भारत के ज्वार उगाने वाली सभी क्षेत्र | लम्बी, मीठी, रसदार, दो कटाईया देने में सक्षम, देर से पकाने वाली, पत्ते अधिक लम्बे व चोडेहोते है जो पकाने तक हरे एअहते है. हरे चारे की ओसत पैदावार 200-240 क्वि/एकड़ व सूखे चारे की पैदावार 70-75 क्वि/एकड़ है. |
हरियाणा चरी 171 | भारत के ज्वार उगाने वाले सभी क्षेत्र | मध्यम लम्बाई, मीठी, रसदार, चोडे पत्तो वाली लाल पति रोग रोधी, हरे चारे की ओसत पैदावार 180-185 क्वि/एकड़ व सूखे चारे की पैदावार 70-75 क्वि/एकड़ है. यह माईट के लिए अवरोधी है तथा 110 से 112 दिन में पक कर तैयार होती है. |
हरियाणा चरी 260 | भारत के ज्वार उगाने वाले सभी क्षेत्र | लम्बी , बिना मिठास की , लम्बे व चौड़े पत्ते , रोग रोधी , सूखे चारे के लिए उपयुक्त , औसतन 180 से 200 क्वि . / एकड़ हरा चारा और 70 से 75 क्वि . / एकड़ सूखा चारा । |
हरियाणा चरी 308 | भारत के ज्वार उगाने वाले सभी क्षेत्र | लम्बी , रसदार , लम्बे व चौडे पत्ते , लाल पत्ती रोग रोधी , हरे चारे की औसत पैदावार 215 क्वि . / एकड़ व सूखे चारे की पैदावार 70 क्वि . / एकड़ है । |
हरियाणा ज्वार 513 | हरियाणा के ज्वार उगाने वाले सभी क्षेत्र | लम्बी , बिना मिठास की , लम्बे व चौडे पत्ते , रोग रोधी , सूखे चारे के लिए उपयुक्त , औसतन 190 से 210 क्वि . / एकड़ हरा चारा और 70 से 75 क्वि . / एकड़ सूखा चारा । चारे व दाने ( 70-7.5 क्वि . / एकड़ ) दोनों के लिए उपयुक्त है |
हरियाणा ज्वार 541 | हरियाणा के ज्वार उगाने वाले सभी क्षेत्र | लम्बी , मीठी , लम्बे व चौडे पत्तेदार , हरे चारे व बीज उत्पाद के लिए उपयुक्त , हाइड्रोसाइनाड ( धूरीन ) विषाक्ता की कमी , हरे चारे की औसत पैदावार 200-225 क्वि . / एकड़ है । सूखे चारे की पैदावार 70-75 क्वि . / एकड़ है । चारे व दाने ( 7.0 किंव . / एकड़ ) दोनों के लिए उपयुक्त है. |
मीठी सूडान | भारत के ज्वार उगाने वाले सभी क्षेत्र | मीठी, 3-5 कटाईयो वाली, चारा लम्बे समय तक मिलता रहता है विशेषकर जब दुसरे चारो की कमी रहती है. मई से नवम्बर तक 3-5 कटाईयो में 300/ एकड़ हरे चारे की पैदावार |
भूमि व खेत की तैयारी
ज्वार की खेती वैसे तो सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं परन्तु अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए बढ़िया है । खरपतवार नष्ट करने तथा फसल की अच्छी पैदावार के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए । सिंचित इलाकों में मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई और उसके बाद देसी हल से 2 जुताईयां ( एक दुसरे के आर – पार ) बिजाई से पहले अवश्य करनी चाहिए ।
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बिजाई का समय
एक कटाई वाली किस्मों के लिए सिंचित क्षेत्रों में : गर्मी की फसल का बिजाई का उपयुक्त समय 20 मार्च से 10 अप्रैल तक है । खरीफ की फसल का बिजाई का सही समय 25 जून से 10 जुलाई है ।
मानसून निर्भर क्षेत्रों में जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नहीं है वहां खरीफ की फसल मानसून में पहला मौका मिलते ही बो देनी चाहिए ।
अधिक कटाई वाली किस्मों के लिए अधिक कटाई वाली किस्मों की बिजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए । यदि सिंचाई व खेत उपलब्ध न हो तो बिजाई मई के पहले सप्ताह तक की जा सकती है ।
बीज की मात्रा और बिजाई का तरीका
ज्वार के लिए 20-24 किलोग्राम व मीठी सूडान घास के लिए 12 से 14 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के हिसाब से 2.5 से 4 से.मी. गहराई एवं 25-30 से.मी. के फासले पर लाइनों में ड्रिल या पोरे की मदद से बिजाई करें । बीज को बिखेरकर न बोऐं । यदि किसी कारणवश छिड़काव विधि द्वारा बुआई करनी पड़े तो बीज की मात्रा 15-20 प्रतिशत बढ़ाएं । एक कटाई वाली ज्वार की किस्मों की लोबिया के साथ 2 : 1 अनुपात में ( 2 कतार ज्वार तथा 1 कतार लोबिया ) बिजाई की जाए तो चारे की गुणवत्ता और स्वादिष्टता दोनों ही बढ़ जाते हैं ।
उर्वरक प्रबन्धन
- सिंचित या अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन ( 44 किलो यूरिया ) प्रति एकड़ बिजाई के समय तथा 10 किलोग्राम नाइट्रोजन ( 22 किलो यूरिया ) एक महीने बाद डालें । सूडान घास अथवा ज्यादा कटाई वाली ज्वार में हर कटाई के बाद 10 किलो नाइट्रोजन ( 22 किलो यूरिया ) प्रति एकड देनी चाहिए ।
- कम वर्षा वाले या बारानी इलाकों के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन ( 44 किलो यूरिया ) प्रति एकड दें । सारी खाद बिजाई से पहले कतारों में ड्रिल करें ।
- रेतीली व फास्फोरस की कमी वाली जमीनों में 6 किलो शुद्ध फास्फोरस ( 40 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट ) प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के समय डालें ।
खरपतवार प्रबन्धन
ज्वार में खरपतवारों की रोकथाम के लिए बिजाई के तुरन्त बाद या बिजाई के 7-15 दिन के अन्दर 200 ग्राम एट्राज़ीन ( 50 प्रतिशत घु.पा. ) प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें । ऐसा करके खरपतवारों को काफी हद तक रोका जा सकता है अथवा उगने के 15-20 दिन बाद या पहली सिंचाई के बाद , बत्तर आने पर एक बार निराई – गुड़ाई करें । दूसरी गुड़ाई बरसात में जब खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाए तब करें । इससे खरपतवार नियन्त्रण में रहते हैं तथा जमीन में नमी भी बनी रहती है ।
सिंचाई
मार्च – अप्रैल में बीजी गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 15-20 दिन बाद तथा आगे की सिंचाइयां 20-25 दिन के अन्तर पर करें । इस प्रकार लगभग 5 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती । वर्षा ऋतु में बोई गई फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती । यदि बरसात का अन्तराल बढ़ जाए तो आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें । अधिक कटाई वाली फसल में हर कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करें इससे फुटाव जल्दी व अधिक होता है ।
हानिकारक कीड़े
गोभछेदक मक्खी यह कीट फसल को मार्च से मध्य मई और मध्य जुलाई से सितम्बर तक हानि पहुंचाता है इसलिए फसल को मध्य मई से लेकर जून तक बो दें तथा बीज की 10 प्रतिशत मात्रा अधिक प्रयोग में लाएं । अधिक प्रकोप होने पर , फसल में 400 ग्राम कार्बेरिल ( 50 प्रतिषत घु.पा. ) प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें । अगर आवश्यक हो तो दूसरा छिड़काव 10-12 दिन बाद करें । इसका चारा पशुओं को 21 दिन तक न खिलाऐं ।
तना छेदक
इसका आक्रमण फसल उगने के 15 दिन बाद शुरु हो जाता है । छोटी फसल में पौधों की गोभ जाती है । बड़े । पौधों में इसकी सूंडियां तने में सुराख बनाकर फसल की पैदावार व गुणवत्ता को काफी कम कर देती हैं ।
बचाव के तरीके
* ज्वार की फसल कटने के बाद खेतों को अच्छी तरह जोत देना चाहिए व पौधों की बची हुई जड़ों को नष्ट कर देना चाहिए ।
* इन कीड़ों की रोकथाम के लिए 400 ग्राम कार्बेरिल ( 50 ) प्रतिशत घु.पा. ) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के 20 दिन बाद दूसरा छिड़काव 10-12 दिन के अन्तर पर करें ।
टिड्डे
टिड्डे , ज्वार की फसल को छोटी अवस्था से लेकर पूरे वर्षद्धकाल तक हानि पहुंचाते हैं । शिशु और प्रौढ पत्तों को किनारों से खाते हैं जिससे भारी प्रकोप की अवस्था में केवल पत्तों की मध्य शिराऐं और कभी – कभी तो केवल पतला तना ही रह जाता है । फसल छोटी रह जाती है तथा बढ़वार रुकने की अवस्था में कभी – कभी दाने नहीं बनते । फसल पर इन कीडों की संख्या बहुत होती है जिससे इनके मलमूत्र की बहुतायत के कारण फफूद आ जाती है और प्रकोपित फसल चारे के योग्य नहीं रहती । इस कीड़े की रोकथाम के लिए 500 मि.ली. मैलाथियान ( 50 ई.सी. ) व 750 ग्राम कार्बेरिल ( 50 प्रतिशत घु.पा. ) का छिड़काव 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ करें ।
बीमारियां
पत्ते के रोग आमतौर पर एन्थ्राक्नोज़ , पत्ती का झुलसा एवं लाल धब्बे के रोग इत्यादि ज्वार को नुकसान पहुंचाते हैं । इनसे बचाव के लिए हैं:-
* प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें ।
* भूमि में उपस्थित रोग तत्वों की रोकथाम के लिए बीज को बिनोमिल अथवा सेरेसन 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें व इस उपचारित बीज को ही बोएं ।
* वायु जनित रोग तत्वों की रोकथाम के लिए बैविस्टीन ( 0.5 प्रतिशत ) या डाइफोलेटान ( 0.2 प्रतिशत ) रोग के लक्षण दिखने पर 10 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़कें ।
दाने की कंगियारी
रोगी दाने विकृत व भद्दे हो जाते हैं जिनमें काले रंग का पाउडर होता है । इसकी रोकथाम के लिए बीज को एमिसान 2 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बिजाई करें ।