अंडे या मांस के लिए विभिन्न घरेलु पक्षियों जैसे मुर्गा , टर्की , ईमृ , बत्तख , गीज़ आदि को पालने की विधि को मुर्गी पालन कहा जाता है । यह भारत में इतने लंबे समय से प्रचलित है कि अब यह खेती और कृषि प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है । 1950 के दशक से भारत में पोल्ट्री फार्मिंग में जबरदस्त बदलाव आया है । पहले यह एक असंगठित और गैर – वैज्ञानिक प्रणाली थी । परन्तु समय के साथ यह अधिक व्यवस्थित , नियोजित वैज्ञानिक , वाणिज्यिक और संगठित कृषि पद्धति में बदल गया है । ग्रामीण पोल्ट्री क्षेत्र भी भारतीय पोल्ट्री उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान देता है । इसे विश्वसनीय आर्थिक और पोषण स्रोत के रूप में देखा जाता है ।
मुर्गी पालन
सामान्यतया मुर्गी के छोटे बच्चों को स्थानीय स्तर पर ही एक फार्म हाउस बनाकर पालन किया जाता है और बड़े होने पर मांग के अनुसार उनके अंडे या फिर मांस को बेचा जाता है । हालांकि भारत में अभी भी मांस की मांग इतनी अधिक नहीं है परंतु पश्चिमी सभ्यताओं के देशों में पिछली पांच सालों से भारतीय मुर्गी के मांस की मांग काफी ज्यादा बढ़ी है । मुर्गी फार्म एक ऐसा व्यवसाय है जिसको हम कम पूंजी , कम समय , कम परिश्रम और कम जगह में भी शुरू कर सकते हैं ये व्यवसाय ग्रामीण इलाकों में अधिक प्रचलित है ।
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मुर्गीपालन के लाभ
- कम पूंजी में एक अधिक मुनाफे वाला व्यवसाय ।
- किसी प्रकार के विशेष कोर्स की आवश्यकता नहीं ।
- बाजार में मांस और अंडे की अधिक मांग ।
- कम जगह से शुरुआत कर सकते हैं ।
- कम समय में अधिक फायदा शुरू ।
- अधिक रखरखाव और मरम्मत की आवश्यकता नहीं ।
- पोल्ट्री फार्म लाइसेंस की जरूरत नहीं रहती है फिर भी आप करवा सकते हैं ।
- कृषि से जुड़ा व्यवसाय है इसलिए किसान बनने के कारण टैक्स नहीं लगता है । पुरे विश्व में इनकी मांग रहती है ।
- मार्केटिंग की खास जरूरत नहीं बस अपनी नजदीकी बाजार या किसी कंपनी को सीधा सेल कर सकते हैं ।
- घर के सदस्य ही इसमें सहयोग कर सकते हैं किसी खास स्किल की आवश्यकता नहीं होती हैं .
मुर्गीपालन की शुरुआत कैसे करें
मुर्गी पालन की शुरुआत करना एक बहुत ही आसान काम है परंतु इसे एक बड़े व्यवसायीक स्तर पर ले जाने के लिए वैज्ञानिक विधि के तहत मुर्गी पालन की शुरुआत करनी चाहिए । जिससे मांस और अंडों की उत्पादकता अधिकतम हो सके । मुर्गी पालन की शुरुआत अपने गांव या शहर से थोड़ी दूरी पर करना चाहिए । ताकि मुर्गियों पर प्रदूषण का असर न हो । मुगी पालन के लिए ऐसी जगह चुने जहां साफ पानी , हवा – धूप और वाहनों के आने – जाने का अच्छा इंतजाम हो । अगर आप शेड बनाना चाहते हैं तो जगह साफ – सुथरी और खली होनी चाहिए । जगह खुली हो और सुरक्षित भी होनी जरूरी है ताकि मुर्गियों को हवा मिलती रहे और किसी बीमारी का खतरा भी न हो ।
मुर्गियों के लिए आवास और बिछावन की व्यवस्था
आवास व्यवस्था फार्म में तीन प्रकार के आवास प्रयोग किए जा सकते हैं ।
- ब्रूडर्स – चूजों को जन्म से 8 सप्ताह तक रखते हैं ।
- पालनगृह- ग्रोअर्स को 8 से 18 सप्ताह तक रखते हैं ।
- लेयर गृह- अंडे देने वाली मुर्गियों को रखा जाता है ।
बिछावन व्यवस्था
बिछावन के रूप में सूखा , मुलायम , धूल रहित , फफूंद रहित , नई लकडी का बुरादा , पुआल , धान भूसी उपयोग करें । बिछा वन को मोटाई 10 सेमी रखें । वर्षा से पहले बिछावन में 1 किलोग्राम चूना डालें । अमोनिया जैसी गंध आने पर 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट प्रति 15 वर्गफीट बिछावन में मिलाएं । मुर्गी के लिए उपयुक्त तापमान 60 से 75 फॉरेनहाइट तक होता है । फर्श पक्का , बाहर की जमीन से 30 सेमी . ऊंची होनी चाहिए । प्रति मुर्गी के लिए 2 और भारी नस्ल की मुर्गी के लिए 3 वर्गफीट स्थान की जरूरत होती है ।
जगह का चुनाव
किसान भाइयों को जगह को चुनते समय ध्यान रखना होगा कि यह शहर से थोड़ी दूरी पर हो और शांत वातावरण होने के अलावा प्रदूषण भी काफी कम होना चाहिए । इसके अलावा बाजार से फार्म की दूरी भी ज्यादा नहीं होनी चाहिए । यदि आपका घर गांव के इलाके में है । तो वहां पर भी मुर्गी पालन की अच्छी शुरुआत की जा सकती है ।
मुर्गियों के प्रकार
मुर्गियाँ तीन प्रकार की होती हैं जिसमें लेयर मुर्गी , ब्रायलर मुर्गी , देसी मुर्गी शामिल हैं ।
1. लेयर मुर्गी
आमतौर पर लेयर मुर्गी का इस्तेमाल अंडे देने के लिए किया जाता है 4 से 5 माह के बाद यह अंडे देना प्रारंभ कर देती हैं इसके बाद यह 1 साल तक अंडे देती रहती है इनकी कुल उम्र 16 माह तक रहती है इसके बाद इन्हें मांस के लिए बेच दिया जाता है यदि इस प्रजाति के एक मुर्गी की बात करें तो वह एक साल में लगभग 240 से 250 अंडे देती है ।
2. ब्रायलर मुर्गी
इनका इस्तेमाल महज मांस के लिए ही किया जाता है इनके अंदर अन्य भुगियों की तुलना में तेजी से बढ़ने की क्षमता होती है यह लगभग 6 से 7 सप्ताह मे की पूरी तरीके से बेचने के लिए तैयार हो जाती है । इसके अलावा इनका वजन भी अधिक होता है जिससे कि इनसे अधिक मास प्राप्त किया जा सकता है । कम समय में अधिक वजन बढ़ने की वजह से किसान भाइयों को कम खर्चा और अधिक मुनाफा प्राप्त हो पाता है ।
3. देसी मुगी
देसी मुर्गी का इस्तेमाल मांस और अंडे दोनों के लिए किया जाता है इसलिए अधिकतर पोल्ट्री फार्म वाले देसी मुर्गी के कारोबार को ही ज्यादा तरजीह देते हैं ।
उपयोगिता के आधार पर मुर्गियों की नस्लें
- अंडा उत्पादन- लेगहार्न , मिनोक
- मांस उत्पादन- कोचीन , सुसेक्स ऑप्रिगटन , कार्निस , न्यू हैम्पशायर आदि ।
- द्विकाजी नस्लें- रोड आयरलैंड , प्लाईमाउथ रॉक , रेड आस्ट्रालार्म आदि ।
- मनोरंजक नस्लें- असील ( इस मुर्गी का उपयोग मुख्यतः लडाई हेतु किया जाता है
कैसे बनाएं एक अच्छा मुर्गी फार्म
किसी भी प्रकार के मुर्गी फार्म को बनाने से पहले किसान भाइयों को अपने आसपास में ही सुचारू रूप से संचालित हो रहे दूसरे मुर्गी – फार्म की जानकारी जरूर लेनी चाहिए । इसके अलावा भी एक मुर्गी फार्म बनाते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा जैसे कि :
- अपने मुर्गी फार्म को पूरी तरीके से हवादार रखें , साथ ही उसे ऊपर से अच्छी तरीके से ढका जाना चाहिए । जिससे कि बारिश और सूरज की गर्मी से होने वाली मुर्गियों की मौत को काफी कम किया जा सकता है ।
- इसके अलावा कई जानवर जैसे कि कुत्ते , बिल्ली और सांप इत्यादि से बचाने के लिए सुरक्षा की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए ।
- मुर्गियों को दाना डालने के लिए कई प्रकार के डिजाइनर फीडर बाजार में उपलब्ध है । परंतु आपको एक साधारण जार को ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए । डिजाइनर फीडर देखने में तो अच्छे लगते हैं लेकिन उनमें चूजों के द्वारा अच्छे से खाना नहीं खाया जाता है ।
- मुर्गियों को नीचे बैठने के दौरान एक अच्छा धरातल उपलब्ध करवाना होगा जिसे समय – समय पर साफ करते रहने होगा ।
- यदि आप अंडे देने वाली मुर्गीयों का पालन करते हैं तो उनके लिए बाजार से ही तैयार अलग – अलग प्रकार के घोसले इस्तेमाल में ले सकते हैं ।
- रात के समय मुर्गियों को दाना डालने के दौरान इलेक्ट्रिसिटी की पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी ।
- आधुनिक मुर्गी – फार्म में इस्तेमाल में होने वाले हीटिंग सिस्टम का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए क्योंकि सर्दियों के दौरान ब्रायलर मुर्गों में सांस लेने की तकलीफ होने की वजह से उनकी मौत भी हो सकती है ।
- अलग – अलग उम्र के चूजों को अलग – अलग क्षेत्र में बांटकर दाना डालना चाहिए । नहीं तो बड़े चूजों के साथ रहने के दौरान छोटे चूजों को सही से पोषण नहीं मिल पाता है ।
चुजों को पालना
मुर्गी के छोटे छोटे बच्चों को चूजे कहते हैं चूजे दो प्रकार से पैदा किये जाते
1. प्राकृतिक विधि
प्राकृतिक तरीके में मुर्गी प्राकृतिक ढंग से अपने चूजों को पालती है मुर्गी के अंडों से चूजे तैयार करने की एक अलग ही विधि हैं । मुर्गी के 10-12 अंडों को कुडक मुर्गी के बैठने की जगह नीचे रख देते हैं मुर्गी के इन अंडों को अपने के फैलाकर ढककर इन पर बैठती हैं अंडों को मुर्गी के शरीर की गर्मी मिलती हैं अंडों में चुजें तैयार होने लगते है इस प्रक्रिया को अंडे सेना कहते हैं । करी दिनों तक अंडों को मुर्गी सेती हैं । तत्पश्चात अंडों से छोटे छोटे चूजे बाहर आते हैं । चूजों पर भी जब मुर्गी बैठती है । तो ये धीरे धीरे बड़े होने लगते हैं इस प्रकार मुर्गी अंडे व चूजे दोनों का पालन पोषण करती हैं ।
2. कृत्रिम विधि
कृत्रिम पालन पोषण का मतलब चूजों को बिना मुर्गी की सहायता के अंडों से चूजे तैयार करना एवं उनका पालन पोषण करना हैं । कृत्रिम पोषण के लिए पोषक गृह बनाये जाते हैं । पोषक गृहों को चूजों की संख्या के आधार पर छोटा , बड़ा या सुरक्षित बनाना होता हैं पोषक गृहों में चूजे ठंडी , गर्म व बैटरी दड़बा विधि से किये जाते हैं बड़े पैमाने पर पालन पोषण के लिए कृत्रिम विधि ही प्रयोग में लायी जाती हैं चूजों के पोषण में उन्हें गर्म रखना , आराम देना तथा संतुलित भोजन देना आवश्यक होता हैं ।
मुर्गियों के लिए दाने का चुनाव
मुर्गी पालन में होने वाले कुल खर्चे में लगभग 60 प्रतिशत खर्चा मुर्गियों के पोषण पर ही किया जाता है । व्यावसायिक मुर्गी पालन में अच्छे परिणाम के लिए चारा और चारे का कुशल प्रबंधन बेहद जरूरी है । यहां यह ध्यान देना बेहद जरूरी हो जाता है कि जो चारा हम मुहैया करा रहे हैं उसमे सभी जरूरी पोषक तत्व यानी कार्बोहाइड्रेट , वसा , प्रोटीन , मिनरल्स और विटामिन्स भी शामिल हों । नियमित पोषक तत्वों के अलावा अलग से कुछ और बेहतर पोषक तत्व देने की जरूरत है जिससे खाना ठीक से पच सके और साथ ही उनका जल्दी से विकास हो सके ।