देश एवं प्रदेश की नगदी फसलो में कपास का महत्वपूर्ण स्थान है! हरियाणा में लग्भग७ लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में कपास की बिजाई की जाती है! हरियाणा में कपास की ओसत पैदावार 6 से 8 क्विटल प्रति एकड़ है, परन्तु कई प्रगति शील किसानो ने उन्नत कृषि क्रियाये अपनाकर 10 से 12 क्विटल प्रति एकड़ तक भी पैदावार लेने में सफलता पाई है! उन्नत किस्मो व खेती के उन्नत तरीको को अपनाने से पैदावार को बढ़ाया जा सकता है!
कपास की उन्नत किस्में
कपास: ज्यादा पैदावार देने वाली कपास की खेती कैसे करे?
किस्में: कपास के कुल रकबे में से 98% रकबा बी.टी. नर्म के अंतर्गत आता है! उत्तर भारत में बी. टी. नर्म प्राईवेट कम्पनियों द्वारा तैयार की जाती है! अत: किसान भाई अपने राज्य कृषि विश्वविद्यालय से सम्पर्क कर उतम बिज के बारे में जानकारी ले सकते है!
विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अमरीकन कपास/नरमा की उन्नत किस्म
किस्म | पैदावार (क्विटल प्रति एकड़) | विशेषता |
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H 1098i | ओसत पैदावार 8 से 8.5 तथा अधिकतम 15.0 है! | इसके टिंडे बड़े होते है! इस किस्म में रुई की मात्रा 39.9% है! इसमें पता मरोड़ रोग कम आता है! |
विश्वविद्यालय द्वारा विकसित देशी कपास की उन्नत किस्मे
किस्म | पैदावार (क्विटल प्रति एकड़) | विशेषता |
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HD 123 | ओसत पैदावार 8-9 अधितम 12.9 है! | इस किस्म में रुई की मात्रा 39.2% है, इसका रेशा 14.7 मी.मी. लम्बा है! |
HD 432 | ओसत पैदावार 8.6 तथा अधितम 15.4 है! | इस किस्म में रुई कि मात्रा 39.3% है! इसका रेशा 21.2 मि. मी. लम्बा है! |
विश्वविद्यालय द्वारा विकसित देशी कपास की संकर किस्म
किस्म | पैदावार (क्विटल प्रति एकड़) | विशेषता |
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AAH-1 | ओसत पैदावार 9.6 तथा अधितम 19.2 है! | इस किस्म में रुई कि मात्रा 38.0% है! इसका रेशा 18.4 मि. मी. लम्बा है! |
प्रति वर्ष हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बी.टी. नरमा की संकर किस्में जाँच के आधार पर अनुशंसित की जाती है । किसान भाईयों को सुझाव दिया जाता है कि कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई बी.टी. नरमा की संकर किस्में ही लगाऐं ।
सस्य क्रियाएँ
फसल चक्र : चना , बरसीम , मैथी , सरसों व गेहूं की फसलों के बाद या खाली जमीन में कपास की फसल ले सकते हैं ।
भूमि व खेत की तैयारी : रेतीली , लूणी व सेम वाली भूमि को छोड़कर कपास की खेती सभी प्रकार की भूमि पर की जा सकती है । तीन – चार साल में एक बार गहरी जुताई भी की जानी चाहिए । खेत की तैयारी सुबह या शाम को की जानी चाहिए ।
बिजाई का समय : कपास / नरमा की बिजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े से शुरू कर मई के अतिंम सप्ताह तक की जा सकती है । इसके बाद बिजाई करना लाभकारी नहीं रहता । 15 मई तक बिजाई का सर्वोत्तम समय हैं । बीज की मात्रा अगर बिजाई मशीन से की जाती है तो बी.टी नस्मा के दो पैकेट प्रति एकड़ प्रयोग करें । देशी कपास मे बीज की मात्रा 5-6 किलोग्राम प्रति एकड़ है व अमेरिकन कपास / नरमा में बीज की मात्रा 6-8 कि.ग्रा . प्रति ऐकड़ हैं ।
बिजाई का तरीका : कपास की बिजाई , बीज – उर्वरक संयुक्त ड्रिल / प्लांटर की सहायता से करें या कपास की एक कतार वाली ड्रिल का प्रयोग किया जा सकता है । 4-5 से . मी . गहरी बिजाई करें । कतार से कतार की दूरी 67.5 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सै.मी. रखे । संकर व बी . टी . नरमा की बिजाई के लिए कतार से कतार की दूरी 67.5 से.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 60 से.मी. रखनी चाहिए या कतार से कतार की दूरी 100 सैमी व पौधे से पौधे की दूरी 45 सै.मी. रखनी चाहिए । पूर्व से पश्चिम दिशा में बोई गई कपास का उत्पादन अधिक होता है । बिजाई के दो तीन सप्ताह बाद कतारों में पौधों की सिफारिश अनुसार आपसी फासले को ध्यान में रखकर जितने भी फालतू रोग ग्रस्त / कीट प्रभावित व कमजोर पौधे हो उन्हें निकाल दें । एक जगह पर एक ही पौधा रखें!
खाद एवं उर्वरक
बी. टी नरम के लिए शुध्द नाईट्रोजन, शुध्द फास्फोरस, शुध्द पोटाश व जिकसल्फेत क्रमश: 70 : 24: 24: 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की सिफारिश की जाती है! उर्वरक की मरता मिटटी के आधार पर तय की जानी चाहिए , पांच – छ : साल में एक बार 5-7 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए । किसान भाई हरी खाद का उपयोग भी कर सकते है देशी कपास में शुद्ध नाईट्रोजन की 20 कि.ग्रा . प्रति एकड मात्रा का प्रयोग करें ।
- नाइट्रोजन खाद को तीन बार डालना है । एक भाग बिजाई के समय दूसरा भाग बौकी आने पर व तीसरा भाग फूल आने पर पूरा फारफोरस , पोटाश व जिंक बिजाई के समय डाले ।
- फसल में फूल व टिण्डे आने पर किसान भाई 2.5 प्रतिशत युरिया का स्प्रे 10 दिन के अंतराल में दो बार कर सकते है उसके बाद 10 दिन के अंतराल पर एक प्रतिशत पोटाशियम नाइट्रेट ( 2 कि.ग्रा . पोटाशियम नाइट्रेट 200 लीटर पानी ) का स्प्रे करने से उत्पादन व गुणवता मे वृद्धि होती है ।
- कपास मे मूंग का अंतः फसलीकरण किया जा सकता है । कपारा की दो कतारों के बीच मूंग की दो कतार ली जा सकती है । जिससे कपास के उत्पादन में भी वृद्धि होती है व मूंग उत्पादन के साथ – साथ जमीन की उर्वरक शक्ति भी बढ़ती हैं ।
- टपका विधि से भी कपास का उत्पादन किया जाता है इसमे घुलनशील उर्वरक्त को टपका विधि के द्वारा कपास के पौधो को दिया जाता हैं ।
सिंचाई
कपास में पहला पानी जितनी देरी से लगाए ( 45 दिन बाद ) उतना ही लाभकारी होता है । इतना ध्यान रखना है कि पौधे न मरे । फूल व बौकी के समय नमी की मात्रा कम नही रहनी चाहिए । दो तिहाई टिण्डे पकने के बाद कपास मे पानी नही लगाना चाहिए । डोलियां बनाकर सिंचाई करने से पानी की काफी बचत होती है । डिप सिंचाई विधि के द्वारा भी कपास में सिंचाई की जा सकती है । अगर ड्रिप विधि के द्वारा सिंचाई की जाती है तो खाद भी ड्रिप के द्वारा दिया जा सकता है जिस से उत्पादन लागत घटाई जा सकती है व पानी की भी काफी बचत होती है ।
निराई तथा गुड़ाई
कपास की फसल में 2-3 बार निराई गुड़ाई अवश्य करें । खरपतवार के नियंत्रण के लिए कपास की बिजाई के तुरंत बाद स्टोम्प 30 ( पैण्डीमैथीलीन ) का प्रयोग 2 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से करें । पहली सिंचाई से पहले कसोला से एक खोदी की जानी चाहिए । इसके बाद हर सिंचाई के बाद निराई गुडाई की जानी चाहिए ।
कीट प्रबंधन
बी.टी. नरमा को मुख्यता रस चूसने वाले कीट हानि पहुँचातें हैं जब कि देसी एवं नरमा को रस चूसने वाले कीटों के साथ साथ फलीय भागों को खाने वालें कीट भी हानि पहुँचातें हैं । वर्तमान में बी.टी. नरमा में गुलाबी सुंडी का प्रकोप हमारे प्रदेश के 14 जिलों में पाया गया हैं
रस चूसने वाले कीट
सफेद मक्खी : इस कीट के शिशु व प्रौढ पत्तों की नीचली सतह से रस चूसकर पौधों को हानि पहुचातें है । यह कीट पत्तों के नीचे शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है जिस पर काली फफूंद उग जाती है व पत्ते काले पड़ जाते हैं । जब यह पदार्थ खिले टिण्डों पर पड़ता है तो रूई भी काली और चिपचिपी हो जाती है । आमतौर पर अगस्त – सितम्बर में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है ।
रोकथाम : सफेद मक्खी का आर्थिक कगार ( 6-8 प्रौढ़ प्रति पत्ता ) पहुंचने पर प्रति एकड़ 300 मि.ली. डाइमेथोएट 30 ई.सी. या 300-400 मि.ली. मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी. व एक लीटर नीम आधारित कीटनाशक ( निम्बीसीडीन या अचूक ) का बारी – बारी से 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें । इसके अलावा 240 मि.ली. स्पिरोमेसीफेन ( ओबेरॉन ) 22.9 एस . सी . या 400 मि.ली. पाइरीप्रोक्सिफेन ( डायटा ) 10 ईसी या 60 ग्राम फलोनिकामिड ( उलाला ) 50 डब्ल्यू जी को 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें । थेटिक कीटनाशकों का प्रयोग न करें ।
चूरड़ा ( थ्रिप्स ) : इस कीट के व्यस्क एवं शिशु पत्तियों की नीचली सतह की नसों के आस पास से रस चूसते हैं । चूरड़ा ग्रसित पत्तों की निचली सतह को अगर धूप की ओर किया जाए तो वह चांदी की तरह यमकती है । अगर लम्बे समय तक खुष्क भौसम रहे तो इस कीट का प्रकोप काफी बढ़ जाता है जिससे पत्ते सूख कर गिर भी जाते हैं । यहा कीट जून जुलाई में ज्यादा क्षति पहुँचाता है ।
रोकथाम : थ्रिप्स का आर्थिक कगार ( 10 थ्रिप्स प्रति पत्ता ) पहुंचने पर 250-350 मि.ली. डाइमेथोएट ( रोगोर ) 30 ई.सी. या 300-400 मि.ली. आक्सीडीमेटॉन मिथाईल ( मैटासिस्टॉक्स ) 25 ई.सी.को 120-150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
हरा तेला : इस कीट के व्यस्क एवं शिशु पत्तों की नीचली सतह से रस चूसते हैं । इस कीट के प्रकोष से शुरूआत में पत्ते किनारों से पीले पड़ने तथा न लगते हैं । बाद में उन पर पीले व भूरे धब्बे पड़ जाते हैं । अंत में पत्ते ताम्बे अथवा जंग जैसे लाल रंग के हो जाते हैं तथा सूख कर गिर जाते हैं । यह कीट जुलाई अगस्त में सर्वाधिक क्षति पहुंचता है!
रोकथाम : हरा तेला का आर्थिक कगार ( 2 शिशु प्रति पत्ता ) पहुंचने पर 40 मि.ली. इमीडाक्लोपरिड ( कॉन्फीडोर ) 200 एस.एल. या 40 ग्राम थायामीथोक्सैम ( एकतारा ) 25 घु . दाने को 120-150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें । इसके अतिरिक्त 60 ग्राम फ्लोनिकामिड ( उलाला ) 50 डब्ल्यू जी प्रति एकड़ का ज्यादा प्रकोप की स्थिति में छिड़काव कर सकते हैं ।
मीलीबग : मीलीबग एक सफेद रंग का कीट है जो पौधों के विभिन्न भागों से समूह में एकत्र हो कर रस चूसते हैं तथा पौधें के जिस भी भाग पर यह अपनी कॉलोनी बसा लेते हैं उसे सुखा देते हैं ।
रोकथामः खेत में या खेत के आसपास खरपतवारों को न पनपने दें । यदि मीलीबग को नष्ट करने वाला ‘ एनासियस ‘ नामक परजीवी सक्रिय हों तो मीलीबग के नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का छिड़काव न करें । मीलीबग ग्रसित पौधों पर सिफारिश किए गए कीटनाशकों : 3 मि.ली. प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. अथवा 1.5 ग्राम थायोडिकार्ब ( लार्विन ) 75 डब्ल्यू.पी . अथवा 4 मि . ली . क्विनलफॉस 25 ई.सी. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें ।
फलीय भागों को हानि पहुंचाने वाले कीट
चित्तीदार सुण्डी: इस कीट की सुण्डी सर्वप्रथम पौधे के तने में ऊपरी भाग ( कोमल प्ररोह ) पर छेद करके प्रवेश कर जाती है और कोमल भाग को खाती है , जिसके कारण ऊपर की शाखा मुरझा कर नीचे की ओर लटक जाती है । इसके बाद कली , फूल व टिण्डे में छेद करके अंदर प्रवेश कर जाती है और उसके मुलायम भाग तथा बीजों को काटकर खाती है । इस कीट का प्रकोप देशी कपास में ज्यादा होता है ।
अमेरिकन सुण्डी: अमेरिकन सुंडी कली , फूलों व टिण्डे में छेद करके उसके अंदर के भाग को खा जाती है । इस सुंडी का सिर टिण्डे के अंदर घुसा रहता है और शेष शरीर टिण्डे से बाहर रहता है । यह एक बहुभक्षी कीट है जो वर्ष भर सक्रिय रहता है ।
गुलाबी सुण्डी: यह सुंडी फूलों में घुसकर नर व मादा अंगों को नष्ट कर देती है । गुलाबी सुंडी का बहुत छोटा कीट टिण्डे में प्रवेश कर जाता है और अंदर रहकर बीज व विकसित रूई को खा जाता है । सुंडी जब टिण्डे में प्रवेश करती है तो प्रवेश द्वार को ऊपर से रेशमी जाले से बंद कर देती है । फलतः ऊपर से देखने पर यह बताना कठिन होता है कि ये टिण्डा क्षति ग्रस्त है या नहीं ।
रोकथाम: पिछले वर्ष जिन खेतों या इलाकों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप रहा हो , उन खेतों की कपास / नरमा की लकड़ियों / बनछटियों से टिंडे एवं पत्तें झाड़कर नष्ट कर दें । आर्थिक कगार ( 5-10 % प्रभावित फूल / टिंडे ) पहुंचने पर निम्नलिखित कीटनाशकों को आवश्यकतानुसार बदल – बदल कर 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
कीटनाशक | मात्रा/एकड़ | |
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1. | निम आधारित कीटनाशक | 1000 मि.ली. |
2. | प्रोफेनोफोस 50 ई,सी. | 800 मि.ली. |
3. | थायोदीकार्ब 75 डबल्यु. पी. | 250-300 ग्राम |
4. | क्विनलफ़ोस 25 ई. सी. | 800-1000 मि.ली. |
5. | साईपरनोसेड 45 एस. सी. | 75 मि.ली. |
6. | साईपरमेथिन 25 ई. सी. | 80-100 मि.ली. |
7. | डेकामैथ्रिन 28 ई.सी. | 160-200 मि.ली. |
पति खाने वाले किट
एस्स्में मुख्य सूप से तम्बाकू सुंडी, कुबड़ा किट, बालो वाली सुंडी, पता लपेट सुंडी व स्लेटी सुंडी है! त्म्भाकू सुंडी पतीया की नीचली साथ को खाती है जिस से केवल पतियों की शिराए ही शेष रह जाती है! अधिक प्रकोप की दशा व तिन्ड़ो को भी नुकसान पहुंचती है!
रोकथाम: इस किट की रोकथाम के लिए एकड़ 200मि.ली, नोवालुरोंन (रिमोन) 10 ई.सी. या 250-300 ग्राम थायोदीकार्ब (लार्बिन) 75 घु.पा. का 200 लिटर पानी में मिलकर छिडकाव करे!
दीमक के प्रकोप से बचाव
दीमक के प्रकोप से बचाव के लिए बीज को 10 मि. ली. कलोरपायरीफ़ॉस 20 ई. सी. प्रति किलोग्राम बिज के डर से उपचारित करे! 10 मि. ली. पानी मिलाये तथा उस घोल से एक किलो भिगोये हुए बिज को उपचारित करे! उपचारित बिज को 30 मिनट तक छाया में सुखाकर बोये!