संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है। यह चतुर्थी शुक्ल पक्ष की होती है और हर महीने की चौथी तिथि को मनाई जाती है।
इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और भक्तों के द्वारा विशेष उपवास रखा जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से मान्यता है कि भगवान गणेश सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और सभी संकटों से रक्षा करते हैं।
इस दिन लोग गणेश चालीसा, गणपति अथर्वशीर्ष, वक्रतुण्ड महाकाय स्तोत्र आदि का पाठ करते हुए गणेश जी की पूजा करते हैं। इस दिन लोग दान भी देते हैं और संकष्टी माता की कथा सुनते हैं।
संकष्टी चतुर्थी को दूर करने के लिए लोगों को भगवान गणेश के नाम का जप करना चाहिए और ध्यान देना चाहिए कि वे अपने जीवन में जो भी संकट आते हैं, उन्हें दूर करने में भगवान गणेश की कृपा हो।
संकष्टी चतुर्थी क्या है
संकष्टी चतुर्थी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हर महीने की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और भक्तों के द्वारा विशेष उपवास रखा जाता है। संकष्टी चतुर्थी को दूर करने के लिए लोग भगवान गणेश के नाम का जप करते हैं और ध्यान देते हैं कि वे अपने जीवन में जो भी संकट आते हैं, उन्हें दूर करने में भगवान गणेश की कृपा हो।
इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं और गणेश जी की पूजा करते हैं। उन्हें भगवान गणेश के मन्त्र जप करने और उनकी कथा सुनने का भी महत्वपूर्ण स्थान है। लोग इस दिन दान भी करते हैं और अन्यों की मदद करने का प्रयास करते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से मान्यता है कि भगवान गणेश सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और सभी संकटों से रक्षा करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी 2023 date list
मंगलवार, 10 जनवरी अंगारकी चतुर्थी
गुरुवार, 09 फरवरी संकष्टी चतुर्थी
शनिवार, 11 मार्च संकष्टी चतुर्थी
रविवार, 09 अप्रैल संकष्टी चतुर्थी
सोमवार, 08 मई संकष्टी चतुर्थी
बुधवार, 07 जून संकष्टी चतुर्थी
गुरुवार, 06 जुलाई संकष्टी चतुर्थी
शुक्रवार, 04 अगस्त संकष्टी चतुर्थी
रविवार, 03 सितंबर संकष्टी चतुर्थी
सोमवार, 02 अक्टूबर संकष्टी चतुर्थी
बुधवार, 01 नवंबर संकष्टी चतुर्थी
गुरुवार, 30 नवंबर संकष्टी चतुर्थी
शनिवार, 30 दिसंबर संकष्टी चतुर्थी
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे थे, अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन दिक्कत ये थी कि इन दोनों के अलावा गेम में जज की भूमिका निभाने वाला कोई तीसरा शख्स नहीं था. इस समस्या का समाधान ढूंढते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण फूंक दिए। दोनों ने मिट्टी के बने लड़के को आदेश दिया कि वह खेल को ध्यान से देखे और तय करे कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को हराकर विजयी हो रही थीं।
खेल चलता रहा लेकिन एक बार गलती से बच्चे ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। बालक की इस गलती से माता पार्वती बहुत क्रोधित हुईं, जिससे उन्होंने क्रोधित होकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। बच्चे ने अपनी गलती के लिए मां से दरियादिली से माफी मांगी और उसे माफ करने को कहा। बालक के बार-बार आग्रह को देखकर माता ने कहा कि अब श्राप तो वापस नहीं हो सकता, लेकिन वह कोई उपाय बता सकती हैं, जिससे वह श्राप से मुक्त हो सके। माता ने कहा कि संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं इस स्थान पर पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछो और उस व्रत को सच्चे मन से करो।
व्रत की विधि जानकर बालक ने पूरी श्रद्धा और विधि के अनुसार व्रत किया। भगवान गणेश उसकी सच्ची पूजा से प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा व्यक्त की। गणेश ने लड़के की मांग को स्वीकार कर लिया और उसे शिवलोक ले गए, लेकिन जब वह पहुंचे तो उन्होंने वहां केवल भगवान शिव को पाया। भगवान शिव से नाराज होकर माता पार्वती ने कैलाश छोड़ दिया। जब शिव ने लड़के से पूछा कि तुम यहां कैसे आए, तो उसने उससे कहा कि उसने गणेश की पूजा करके यह वरदान प्राप्त किया है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए वह व्रत किया, जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर कैलाश लौट गईं।
इस कथा के अनुसार संकष्टी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।