इस साल भी देरी से हो रही मानसून की वापसी, 13वें साल हो रहा है ऐसा, जानें इसके पीछे की बड़ी वजह

इस साल पूरे देश में मानसून देरी से वापसी करने वाला है, ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है, की देश में आमतौर पर दक्षिण पश्चिम मानसूनी हमारे 17 सितंबर के बाद शुरू हो जाती है और उत्तर पश्चिम भारत से वापस जाना शुरू होती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है।

मानसून की वापसी

इस समय संभावना जताई जा रही है कि, 22 अक्टूबर तक बढ़ सकती है। यह 13वा साल है, जब मानसून की वापसी देरी से हो रही है। मौसम विभाग के अनुसार बताया जा रहा था कि। सितंबर से 27 सितंबर के अंत तक बारिश एक बार फिर से सक्रिय होगी।

वही अनुमान यह भी है, कितनी सितंबर तक देश में सामान्य से कम बारिश भी हो सकती है। हालांकि यह 90 से 95 फ़ीसदी किसी के बीच रहने वाली है, क्योंकि अधिकतर जगहों पर बारिश का कोटा पूर्ण हो चुका है, मानसून सीजन जून से सितंबर के दौरान सामान्य औसत 868।8 मिमी है। आईएमडी के अनुसार, 21 सितंबर तक देश में कुल मिलाकर सात फीसदी बारिश कम हुई।

यह है कारण इस साल देरी का –

मोसम अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा बताया जा रहा है कि, इस बार आर्कटिक समुद्री बर्फ को काफी नुकसान हुआ है। इसके अलावा उत्तरी गोलार्ध विशेष रूप से ऊष्णकटिबंधीय अटलांटिक काफी गर्म रहा जिसके कारण आईटीसीजेड को उत्तर की ओर खींच लिया है और अल नीनो पैटर्न पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग का संकेत है, इसके कारण मानसून अभी भी बना हुआ है।

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आपको बता दे की इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस जोन एक ऐसा क्षेत्र होता है, जहां पर दो गोलार्धों की व्यापारिक हवाएं एक-दूसरे से टकराती हैं, जो स्थिर मौसम और भीषण गरज के साथ अनियमित मौसम का कारण बनती हैं। एसे में जब आईटीसीजेड उत्तर की ओर स्थानांतरित होता है तो, भारतीय उपमहाद्वीप पर मानसून बरकरार रहता है। इसके कारण ऊपरी वायुमंडल के दबाव और अरब सागर से नमी की आपूर्ति के साथ मानसून ट्रफ और मानसून डिप्रेशन की गति को प्रभावित करते हैं, जिससे की मोसम में बदलाव बने रहते है।

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