करेला की खेती एक लाभदायक कृषि उपयोग है। करेले का उपयोग भोजन और औषधि के रूप में किया जाता है। करेला एक फली वाली सब्जी होती है जो विभिन्न नामों से जानी जाती है, जैसे कि करेला, करेली, बिट्टर गोर्ड, खरबूजा, यह उष्णकटिबंधीय और तटीय क्षेत्रों में पायी जाती है।
करेले की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम गर्मी होती है। करेले के बीज को मिट्टी में बोएं जब मौसम गर्म होता है और जब तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस होता है। करेले की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी नमीभर रहती है जो निचले भागों में पानी को जमा नहीं करती है। करेले को उगाने के लिए मिट्टी को खुशबूदार बनाने के लिए उर्वरक और खाद का उपयोग किया जा सकता है।
करेले को बीच से काटकर निकाला जाता है और उसमें बीज निकाल दिए जाते हैं। निकाले हुए करेले को सूखाया जाता है और फिर बाजार में बेचा जाता है। एक एकड़ में 20-25 टन करेले उगाए जा सकते हैं।
करेला की खेती का समय
करेले की खेती भारत में साल के लगभग सभी मौसमों में की जा सकती है। हालांकि, अधिकतर किसान गर्मियों के मौसम में करेले की खेती करते हैं क्योंकि इस समय फसल की उत्पादकता ज्यादा होती है। करेले की बुआई फरवरी से मार्च महीने के बीच और जून-जुलाई में की जा सकती है।
करेला की खेती करने का समय भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के मौसम और जलवायु के आधार पर अलग-अलग होता है। अधिकतर इलाकों में करेले की बुआई फरवरी से मार्च तक और जून से जुलाई के महीनों में की जाती है। इसके अलावा गर्मी के मौसम में भी करेले की खेती की जा सकती है।
करेला की खेती रोग
करेले की खेती में कुछ सामान्य रोग होते हैं जो उनकी वृद्धि को रोक सकते हैं। ये रोग हैं:
- फिटोप्थोरा प्रकार 2: यह रोग प्रभावित पौधों के पत्तियों पर घाव और सुखाने वाले छेदों के रूप में दिखाई देता है। इस रोग से बचाव के लिए विभिन्न प्रकार के फंगीद्रव्यों का उपयोग किया जा सकता है।
- अंजीबोट पक्षी: यह रोग खेती के पौधों को संक्रमित करता है और उन्हें मरने के लिए ले जाता है। इस रोग से बचाव के लिए नियमित रूप से खेत को साफ किया जाना चाहिए और फंगीद्रव्यों का उपयोग किया जाना चाहिए।
- फसल का संक्रमण: यह रोग करेले के फलों पर दाग और कलाई के रूप में दिखाई देता है। इस रोग से बचाव के लिए फंगीद्रव्यों का उपयोग किया जा सकता है।
- करेले का येल्लो मोसेक वायरस: यह रोग करेले के पत्तों पर पीले और हरे दागों के रूप में दिखाई देता है। इस रोग से बचाव के लिए संक्रमित पौधों को नष्ट करना चाहिए।
- फिटकरी का उपयोग: फिटकरी को पानी में मिलाकर फुंक मारने से रोगों से बचा जा सकता है।
- जुकाम रोग: जुकाम रोग से बचाव के लिए, करेले के पौधों पर नियमित तौर पर नींबू का रस डालें।
- पानी से जमाव: अधिक पानी से करेले की खेती करने से बचें। अधिक पानी करेले के पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है।
- करेले के कीटों से बचाव: करेले के पौधों पर कीटों का हमला हो सकता है। इससे बचने के लिए, नीम के तेल को पानी में मिलाकर करेले के पौधों पर छिड़कें।
- फुफ्फुस रोग: यह रोग करेले की पत्तियों पर होता है। इससे बचने के लिए, करेले की खेती करने से पहले सभी संक्रमित पत्तियों को काट दें।
इन उपायों का पालन करने से करेले की खेती में रोगों से बचाव किया जा सकता है।
करेला की खेती कब और कैसे करें
करेले की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मौसम उत्तर भारत में मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर होता है। करेले के लिए जमीन नमीपूर्ण होनी चाहिए और अधिक से अधिक मिट्टी में न्यूनतम 5 फीट गहराई तक खोदी जानी चाहिए। करेला की खेती मुख्य रूप से गर्मियों में की जाती है। निम्नलिखित तरीके से करेले की खेती की जा सकती है:
- भूमि की तैयारी: करेले की खेती के लिए उपयुक्त भूमि चुनें। भूमि में कम से कम 6.5 से 7.5 फीसदी की विषाक्तता होनी चाहिए।
- बीज की बोनी: करेले के बीज को खेत में बोना जा सकता है। बीज को बोने से पहले, उन्हें पानी में भिगोकर एक रात के लिए छोड़ दें।
- बुआई: करेले के बीजों को मांग अनुसार 1 फुट दूरी पर बोएं।
- पानी देना: करेले के पौधों को नियमित तौर पर पानी दें। पानी देने की शुरुआत बीज बोने के 10-15 दिन बाद करें।
- खाद का इस्तेमाल: करेले के पौधों के विकास के लिए उपयुक्त खाद का इस्तेमाल करें। उर्वरक, घोबर, आदि का उपयोग किया जा सकता है।
- प्रतिरोधक उपकरणों का उपयोग: करेले की खेती में उपयुक्त प्रतिरोधक उपकरण शामिल हैं। माइल्डू, फफूंदी के खाद, आदि का उपयोग किया जा सकता है।
- बीज बोना: जमीन को अच्छी तरह खोदकर बीज बोएं। बीजों के बीच 18 सेमी की दूरी रखें।
- सिंचाई: नए पौधों की सिंचाई नियमित तौर पर करें।
- पौधों को ढाल से ढकना: करेले के पौधों को धूप से बचाने के लिए ढाल लगाएं।
- खाद देना: करेले की खेती में खाद देना अत्यंत आवश्यक होता है। खाद में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम का समावेश होना चाहिए।
- फसल को काटना: फसल को कटाने से पहले कम से कम 3 सप्ताह बाद पानी देना बंद कर दें। इससे करेले का स्वाद मीठा हो जाता है।
करेले की खेती से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क करे!
करेले का पौधा कितने समय तक रहता है?
करेले के पौधे की उम्र पौधे की विविधता, उपजाऊ वातावरण, उपजाऊ बीज वगैरह से निर्भर करती है। सामान्यतः, करेले के पौधे की उम्र 4 से 6 महीने के बीच होती है। फल पकने के बाद, पौधे को कटा जाता है और फिर नए पौधे बोए जाते हैं।
करेले की ग्रोथ कैसे करें?
करेले की ग्रोथ के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
- उपयुक्त मौसम: करेले की उन्नति के लिए उपयुक्त मौसम चुनें। करेले को अधिकतर गर्मी वाले मौसम में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है।
- उपयुक्त जमीन: करेले को नमीपूर्ण और उर्वरक भरे मिट्टी में उगाया जाना चाहिए।
- बीज बोना: बीज को अच्छी तरह से सफाई करें और उन्हें नारियल की फाइबर या धातु के छल्नी से उतारें। फिर उन्हें 24 घंटे तक पानी में भिगो दें। उन्हें स्थान पर रखकर सुखाने के बाद, बीज बोएं।
- सिंचाई: करेले को नियमित तौर पर सिंचाई करें।
- खाद देना: करेले को उर्वरक दें जो नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम से भरपूर हों।
- फसल को काटना: करेले को फल पकने से पहले काट लें। इससे नए फल उत्पन्न होते हैं।
करेले की ग्रोथ से संबंधित अधिक जानकारी के लिए स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क करें।
सर्दियों में करेले की खेती कैसे करें?
करेले की खेती सर्दियों में निम्नलिखित टिप्स के अनुसार की जानी चाहिए:
- बीज का चुनाव: सर्दियों में करेले की खेती के लिए, उन बीजों का चयन करें जो ठंडे मौसम के लिए उपयुक्त हों।
- मौसम: करेले की उगाई के लिए सबसे उपयुक्त मौसम नवंबर से फरवरी तक होता है।
- मिट्टी की तैयारी: करेले की उगाई के लिए अच्छी मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करें और उचित मात्रा में कंपोस्ट या अन्य उर्वरक डालें।
- सीधे बीज बोना: सर्दियों में करेले की उगाई के लिए बीज को सीधे जमीन में बोना जाना चाहिए। बीज को खोदने से पहले जमीन को अच्छी तरह से खोदें और उसमें खाद डालें।
- सिंचाई: सर्दियों में करेले को नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई को धीमी गति से करें ताकि पानी न बह जाए।
- पेयजल: करेले को पेयजल की आवश्यकता होती है,
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